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Wednesday, 3 September 2014

नमामि गंगे, वाराणसी



पिछले १०-१२ दिनो से   (२१ अगस्त से ३१ अगस्त, २०१४) मैं वाराणसी था. लगभग ४०-४५ वर्षों के बाद फिर से इस पुण्यभूमि में जाने का अवसर मिला था।  इतने वर्षों में भी वहां विशेष बदलाव नहीं आया. वहां के मंदिर, पवित्र गंगा और पुरानी गलियों में कोई खास बदलाव नहीं आया है।  गंगा जरूर बहुत मैली हुई है. इस दौरान गंगा आरती देखने दशाश्वमेध घाट गया, आरती का दृश्य नयनाभिराम था परन्तु घाट में व्याप्त गन्दगी मन को खिन्न कर रही थी. आसपास खड़े सफाई पसंद विदेशियों से नज़ारे मिलाना कठिन हो रहा था.

नरेंद्र मोदी ने प्रधान मंत्री बनते ही गंगा की सफाई को अपनी प्राथमिकता बनाया है जिससे उम्मीद की किरण जागती है. वाराणसी उनका चुनाव क्षेत्र भी है. अभी उनकी जापान यात्रा के दौरान वाराणसी को जापानी शहर क्योटो के तर्ज़ पर विकसित करने की चर्चा भी सामने आई.

गंगा के लिए अलग मंत्रालय एवं नमामि गंगे परियोजना से मोदी ने अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी है. लोक जागरण एवं जन भागीदारी इस परियोजना का महत्वपूर्ण पक्ष है. वाराणसी के विभिन्न धार्मिक समुदायों, ट्रस्टों, मंदिरों आदि की भागीदारी से यह कार्य सुगमता से किया जा सकता है।  बनारस के घाटों का विकास इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा। घाटों के विकास के लिए पहले ही १०० करोड़ रुपये का प्रावधान किया जा चूका है।

चन्द्रावती (चंद्रपुरी) बनारस का एक सुन्दर एवं ऐतिहासिक स्थल है. सारनाथ से यह करीब १५ की मी की दुरी पर स्थित है. यहाँ ८ वें जैन तीर्थंकर श्री चंदप्रभु भगवन के चार कल्याणक होने से यह प्रसिद्द जैन तीर्थ है जहाँ बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री विश्व भए से आते रहते हैं. यहाँ गंगा के किनारे मनोरम स्थल पर एक प्राचीन  श्वेताम्बर जैन मंदिर अवस्थित है. जैन समाज इस तीर्थ के विकास में रूचि रखता है एवं इस पर आवश्यक धन खर्च करने को इच्छुक है।  जैन समाज की धार्मिक रूचि को देखते हुए इसमें धन की कमी नहीं आएगी।

यह तीर्थ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है.सं १९१२ में यहाँ के टीलों के भग्नावशेष में ७ ताम्रपत्र मिले थे, जो अब लखनऊ के संग्रहालय में रखे हैं. इनमे से एक ताम्रपत्र के अनुसार गहड़वाल शासक चन्द्रदेव (१०८५-११००) ने चन्द्रावती स्थित मंदिर को भूमि का दान किया था. …… ( वाराणसी के जैन तीर्थ एवं मंदिर, लेखक: ललित चन्द जैन)

इस तीर्थ के विकास में सबसे बड़ी समस्या गंगा का कटाव है, यहाँ गंगा अर्ध चंद्राकर बहती है, जो विशिष्ट सौन्दर्य को जन्म देती है परन्तु यही कटाव का कारन भी है. सन १९४८ में यहाँ के जैन मंदिर परिसर में स्थित जैन दादाबाड़ी गंगा के कटाव का शिकार बनी थी. वर्त्तमान मंदिर बिलकुल गंगा के किनारे पर है एवं यह ऐतिहासिक धरोहर खतरे में है.

मेरा मोदी जी के नेतृत्व की केंद्र सरकार से निवेदन है की इस घाट के संरक्षण में रूचि दिखाए एवं जैन समाज तीर्थ एवं मंदिर का विकास करे. इस प्रकार यह जन भागीदारी का सुन्दर उदाहरण बनेगा। तीर्थ का विकास होने से धार्मिक पर्यटन में वृद्धि होगी, गंगा का कटाव रुकेगा एवं गंगा परियोजना की सार्थकता भी दिखेगी।

मैंने स्वयं इस स्थल को देखा एवं अनुमानित आकलन ये है की करीब ७५० फुट लम्बाई एवं ६५ फुट की ऊंचाई वाले इस गंगा तट के संरक्षण की महती आवश्यकता है. इस मंदिर के पास ही भारतीय पुरातत्व विभाग के कब्जे की जमीन है जिसमे खुदाई होने पर इस ऐतिहासिक धरोहर में पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं प्राप्त होने की सम्भावना है. एक पुराण कुवा इसकी ऐतिहासिकता के साक्ष्य के रूप में अभी दृष्टिगोचर होता है.

मैं भारत का प्रधान सेवक बोल रहा हूँ : लालकिले से नरेंद्र मोदी



Convener, Jaipur division
Prabhari, West Bengal,
Narendra Modi Vichar Manch


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