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Friday, 28 October 2016

चीन की बौखलाहट: बहिष्कार से भारत को होगा बड़ा लाभ


भारत ने चीन के सामान का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है और इससे चीन बौखला गया है. भारतीयों द्वारा लगातार किये जा रहे चीनी समानों के बहिष्कार को चीनी मिडिया प्रमुखता से छाप रहा है. साथ ही चीन अपने चिरपरिचित अंदाज़ में धमकियाँ भी दे रहा है और यह भी कह रहा है की इससे चीन को कोई फर्क नहीं पड़ेगा परंतु भारत को ही नुक्सान होगा। इस बात से ही चीन की बौखलाहट साफ़ नज़र आ रही है. पर इससे भारत को बड़ा लाभ होगा और चीन को नुकसान।

भारतीय उत्पादों से सजी दुकान 

भारत अपने कुल आयात का १६ प्रतिशत चीन से आयात करता है जबकि चीन के कुल निर्यात (जो की काफी बड़ा है) का केवल दो प्रतिशत भारत को होता है. एक अनुमान के अनुसार भारत में चीनी माल की बिक्री में लगभग तीस प्रतिशत की कमी आई है. आंकड़ों के लिहाज़ से देखें तो चीन के कुल निर्यात का यह मात्र ०.६ प्रतिशत है; ऐसी स्थिति में चीन यह दर्शा रहा है की इससे उसकी अर्थनीति को कोई बड़ा नुक्सान नहीं हो रहा है. सतही रूप से यह बात सही भी लगती है, परंतु बात इतनी सीधी नहीं है.

आइये देखते और समझते हैं बहिष्कार का अर्थशास्त्र जिससे चीन की बौखलाहट और भारत के लाभ की अर्थनीति भी समझ में आएगी। चीन भारत को प्रतिवर्ष लगभग ४ लाख करोड़ रुपये या ६० अरब डॉलर का निर्यात करता है जबकि भारत से उसका आयात मात्र ५३ हज़ार करोड़ का है इस प्रकार भारत को चीन का शुद्ध निर्यात करीब साढ़े तीन लाख करोड़ का होता है. चीन के कुल २३०० अरब डॉलर के निर्यात में भारत को किये गए उसके निर्यात का प्रतिशत लगभग २ से २.५ प्रतिशत होता है.

चीनी उत्पाद 
चीन के कुल निर्यात में बड़ा प्रतिशत अमरीका, यूरोप, मध्य एशिया एवं जापान का है. परंतु इन देशों में ज्यादातर महंगे सामानों का निर्यात होता है जबकि भारत में ज्यादातर सस्ते माल का. हम यह जानते हैं की महंगे माल की तुलना में सस्ते माल के निर्माण में मजदूरी का प्रतिशत अधिक होता है  प्रायः महंगे सामान का रिजेक्सन (अपशिष्ट) भी इसमें शामिल हो जाता है. ऐसी स्थिति में सस्ते सामान के निर्माण में ज्यादा मजदूरी व ज्यादा मजदूर लगते हैं जबकि महंगे माल को बनाने में कच्चे माल व तकनीक की लागत अधिक होती है. सस्ते माल का निर्यात (जो की भारत में अधिक होता है) ज्यादा होने से ज्यादा लोगों को मजदूरी अर्थात रोजगार मिलता है और उस निर्यात में कमी आने से उसके उत्पादक श्रमिकों में बेरोजगारी का खतरा रहता है.

भारत को होनेवाले चार लाख करोड़ के निर्यात में यदि आधा मजदूरी का हो तो यह आंकड़ा लगभग दो लाख करोड़ रुपये का होता है. चीन सस्ती मजदूरी के दम पर ही इतना निर्यात कर पाता है और यदि हम भारतीय रुपये में एक चीनी मजदुर की सालाना मजदूरी एक लाख रुपये मानें तो चीन के दो करोड़ श्रमिक भारतीय निर्यात पर निर्भर हैं. भारत द्वारा किये गए आयात में तीस प्रतिशत की कमी का अर्थ है ६० लाख चीनी मजदूरों की बेरोजगारी!!! यही चीन की चिंता का सबसे बड़ा कारण है और यहीं से भारत के लिए बड़े लाभ की सम्भावना शुरू होती है.

यदि भारतीय बाजार में चीनी घुसपैठ इसी प्रकार कम होता रहे और भारतीय उपभोक्ता स्वदेशी माल की और आकर्षित हो तो यही ६० हज़ार करोड़ रुपये हिंदुस्तान के मजदूरों को मिलेंगे और एक लाख रुपये वार्षिक के हिसाब से साथ लाख हिंदुस्तानी मजदूरों को रोजगार मिल जायेगा। साथ ही एक लाख बीस हज़ार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की अतिरिक्त बचत भी होगी। भारतीय उत्पादकों की बिक्री बढ़ेगी और उनका मुनाफा भी देश में ही रहेगा। साथ ही अतिरिक्त उत्पाद का निर्यात भी हो सकता है, जो की इस लाभ को और भी बढा देगा। इससे सरकारी खजाने में भी टैक्स के रूप में अतिरिक्त आय होगी जो की विकास के छक्के को थोड़ा और तेजी से घुमा देगी। है न भारत के लिए बड़ा फायदा !!

इससे दूसरा फायदा ये होगा की भारतीय निर्माता काम लागत में माल बनाने के लिए प्रेरित होंगे और उनकी उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में सुधार होगा जिसे वे वैश्विक प्रतिष्पर्धा में निखर कर आगे आयेंगे। "मेक इन इंडिया" और "मेक फॉर इंडिया"  कार्यक्रमो को भी इससे संबल मिलेगा।

चीन की चिंता के और भी विषय है. भारत ही नहीं चीन के अन्य कई पड़ौसी देश भी चीन की दादागिरी से त्रस्त हैं परंतु उन्हें उससे बहार निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा. भारत के बहिष्कार से प्रेरणा ले कर वे भी चीनी सामानों का बहिष्कार कर सकते हैं और इससे चीन को दोहरा झटका लग सकता है. एक और कारण भी है. २००८-०९ में १२०० अरब डॉलर का चीनी निर्यात मात्र ६ साल में लगभग दुगुना हो कर २०१५-१६ में २३४२ अरब डॉलर तक पहुच गया था परंतु २०१५-१६ में चीनी मुद्रा युयान के अवमूल्यन के बाबजूद यह घट कर २२७४ अरब ही रह गया. २०१६-१७ में यह और भी घटने का अनुमान है. भारत के बहिष्कार से यह  फासला और बड़ा भी हो सकता है.

यदि केवल सितंबर माह के आंकड़े को देखें तो २०१५ में जहाँ चीन ने २०५ अरब डॉलर का निर्यात किया था वहीँ सितंबर २०१६ में मात्र १८४ अरब डॉलर का अर्थात एक वर्ष में २१ अरब डॉलर या दस प्रतिशत की गिरावट! अप्रैल से सितंबर की छमाही में चीन ने केवल १०७५ अरब डॉलर का निर्यात किया है, यदि यह रफ़्तार बरकरार रहे तो भी २०१६-१७ में उसका निर्यात मुश्किल से २१५० अरब डॉलर तक ही पहुँच सकता है. इसमें और भी गिरावट की सम्भावना है. यह चीन को गंभीर में चिंता में डालने के लिए पर्याप्त है.

विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के कारण भारत सर्कार के लिए किसी देश के उत्पादों पर प्रतिवंध लगाना कठिन है और इसलिए हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी या उनके मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य ने बहिष्कार के लिए कोई आह्वान नहीं किया है न ही इस सम्वन्ध में कोई वयान दिया है. परंतु यह नियम भारतीय उपभोक्ता पर लागु नहीं होते। जनता किसी भी उत्पाद को खरीदने या न खरीदने के लिए स्वतंत्र है. चीन द्वारा शत्रुतापूर्ण रवैय्या अपनाते हुए पहले NSG में भारत की सदस्यता का विरोध किया जाना और  भारत पर हुए आतंकवादी हमले के बाद पकिस्तान का साथ निभाया; ऐसी स्थिति में हिंदुस्तान की जनता ने चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर अपनी देश भक्ति का परिचय दिया और चीन को करारा झटका लगा. हमें ये मुहीम आगे भी जरी रखनी है और इससे भारत को बहुत बड़ा फायदा मिलनेवाला है.

पाक आतंकी मसूद अज़हर के समर्थक चीन का हो बहिष्कार

#अर्थनीति, #आयात #निर्यात, #चीनीउत्पाद #बहिष्कार, #भारत #लाभ, #भारतीय #उपभोक्ता

सादर,
ज्योति कोठारी,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
नरेंद्र मोदी विचार मंच
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Saturday, 1 October 2016

पाक आतंकी मसूद अज़हर के समर्थक चीन का हो बहिष्कार


 चीन ने संयुक्त राष्ट्र संघ में फिर से पाक आतंकी मसूद अज़हर का पक्ष लिया है. मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आतंकवादी घोषित करवाने के लिए भारत ने जो प्रक्रिया शुरू की थी आज चीन ने उस पर वीटो कर दिया जिससे यह प्रस्ताव पास नहीं हो सका. अब हमें चीन में निर्मित सामानों के बहिष्कार के लिए आगे आना होगा।

आतंकवादी मसूद अज़हर 
चीन ने ऐसी हरकतें पहले भी की है. इसी वर्ष जून महीने में चीन ने भारत की NSG सदस्यता के मुद्दे पर भी अड़ंगा लगाया था और भारत की सदस्यता के रस्ते में रोड़ा अटकाया था. चीन के अलावा सभी देश भारत के NSG सदस्यता पक्ष में थे. परंतु चीन के विरोध के कारण भारत परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य नहीं बन पाया था.

पठानकोट एवं उरी में हुए आतंकी हमले के भारत ने सख्त रुख अपनाते हुए पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अभियान चलाया एवं इस काम में भारत को अभूतपूर्व अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला।  भारत के पडोसी देशों सहित विश्वभर के देशों ने भारत के रुख  समर्थन किया एवं पाकिस्तान अलग थलग पड़ने लग गया है. इस बीच भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक करके ७ आतंकवादी कैम्पों को नष्ट कर और लगभग ५० आतंकवादियों को मर कर पाकिस्तान को उसकी नापाक हरकतों का करार जवाब दिया है. इससे पाकिस्तान की सेना, हुक्मरान, एवं आतंकवादी बौखला गए हैं.

अमरीका, ब्रिटेन, रूस जैसे प्रमुख देशों ने पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ गंभीर चेतावनी दी है. अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान एवं श्रीलंका जैसे भारत के पड़ौसी देशों ने भारत का साथ देते हुए पाकिस्तान में होनेवाले SAARC सम्मलेन का बहिष्कार किया है. जब सारी दुनिया भारत का समर्थन एवं पाकिस्तान व आतंकवाद के खिलाफ खड़ी है तब भी चीन ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में आतंकवादी मसूद अज़हर का पक्ष लिया है और उसे आतंकवादी घोषित करने के भारत के प्रस्ताव का विरोध किया है. चीन की ऐसी भारत विरोधी रुख का कड़ा जवाब देना जरुरी है.दरअसल चीन इस क्षेत्र में महाशक्ति की तरह व्यव्हार कर रहा है और भारत का लगातार शक्तिशाली होना उसे कतई पसंद नहीं आ रहा है. इसीलिए वो लगातार भारत का विरोध और पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है.

Update: अभी एक समाचार और मिला है की चीन ने ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का पानी रोक दिया है जिससे तिब्बत से भारत की ओर आने वाले पानी में कमी हो जाएगी। ऐसा करके भी चीन पाकिस्तान को ही मदद पंहुचा रहा है क्योंकि आतंकवादी हमलों के वीच भारत ने सिंधु नदी जल समझौते की समीक्षा करना प्रारम्भ कर दिया है और इससे पाकिस्तान दवाव में है.

चीनी निर्यात 
China Export Treemap from MIT-Harvard Economic Observatory By R Hausmann, Cesar Hidalgo, et. al. Creative Commons Attribution-Share alike 3.0 Unported license. See permission to share at //atlas.media.mit.edu/about/permissions/ [CC BY-SA 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)], via Wikimedia Commons

चीन को सबक सीखने के लिए यह जरुरी है की उसे आर्थिक मोर्चे पर मात दी जाये। लगातार दो दशक तक तीव्र आर्थिक विकास के बाद अब उसकी अर्थनीति ढलान पर है और चीन कई प्रकार की आर्थिक समस्यायों से जूझ रहा है. निर्यात आधारित उसकी अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी के कारन घोर संकट में है. भारत चीनी सामान का बड़ा बाज़ार है और वह यहाँ पर अरबों डॉलर का निर्यात करता है. जबकि भारत से उसका आयात तुलनात्मक रूप से काफी काम है. विश्व व्यापर संगठन के नियमों के अनुसार भारत चीन से आयात पर प्रतिवंध नहीं लगा सकता। इसलिए यहाँ के राष्ट्र भक्त नागरिकों को ही यह कदम उठाना पड़ेगा और चीनी सामान का बहिष्कार करना होगा।

यदि भारत के लोग चीनी सामान खरीदने से इनकार कर दें तो इससे चीन की अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगेगा और उसकी आर्थिक तरक्की रुक जाएगी। मंदी की मार झेल रहे चीन के लिए यह झटका सहन करना आसान नहीं होगा और उसे अपनी भारत विरोधी हरकतों से बाज आना पड़ेगा। इससे उसकी पाकिस्तान परस्त नीति को भी जोरदार झटका लगेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मौसी एवं उनकी सर्कार ने पाकिस्तान को धूल भी चटाया है और उसे करार झटका भी दिया है. अब हम राष्ट्र भक्त भारतीयों को पाकिस्तान के दोस्त चीन को सबक सीखना चाहिए. मोदी जी ने जो करना था कर दिया और आगे भी करते रहेंगे, अब हमारी बारी है की हम चीनी उत्पादों का बहिष्कार करें और चीन को सबक सिखाएं, ध्यान रखें भारत को आगे बढ़ने के लिए चीन को सबक सीखाना जरुरी है.

विशेष आग्रह
अभी नवरात्री और दीवाली हैं, चीन 3000 करोड़ की लाइट बेचती हैं. अपील है की कोई न खरीदे।

२ अक्टूबर गाँधीजी व शास्त्री जी के के जन्मदिन पर यह प्रतिज्ञा करे कि स्वदेशी अपनाएंगे। चीन को करारा जवाब देंगे।
विशेष सूचना

आज कल चीन के सामान पर Made in China नहीं लिखा होता है.  अब लिखा आता है,  Made in PRC मतलब People Republic of China.  सभी से शेयर करे. चीनी सामान का बहिष्कार करें।

आइये हम सब मिलकर राष्ट्रधर्म निभाएं!

सादर,
ज्योति कोठारी,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
नरेंद्र मोदी विचार मंच