भारत ने चीन के सामान का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है और इससे चीन बौखला गया है. भारतीयों द्वारा लगातार किये जा रहे चीनी समानों के बहिष्कार को चीनी मिडिया प्रमुखता से छाप रहा है. साथ ही चीन अपने चिरपरिचित अंदाज़ में धमकियाँ भी दे रहा है और यह भी कह रहा है की इससे चीन को कोई फर्क नहीं पड़ेगा परंतु भारत को ही नुक्सान होगा। इस बात से ही चीन की बौखलाहट साफ़ नज़र आ रही है. पर इससे भारत को बड़ा लाभ होगा और चीन को नुकसान।
भारतीय उत्पादों से सजी दुकान |
भारत अपने कुल आयात का १६ प्रतिशत चीन से आयात करता है जबकि चीन के कुल निर्यात (जो की काफी बड़ा है) का केवल दो प्रतिशत भारत को होता है. एक अनुमान के अनुसार भारत में चीनी माल की बिक्री में लगभग तीस प्रतिशत की कमी आई है. आंकड़ों के लिहाज़ से देखें तो चीन के कुल निर्यात का यह मात्र ०.६ प्रतिशत है; ऐसी स्थिति में चीन यह दर्शा रहा है की इससे उसकी अर्थनीति को कोई बड़ा नुक्सान नहीं हो रहा है. सतही रूप से यह बात सही भी लगती है, परंतु बात इतनी सीधी नहीं है.
आइये देखते और समझते हैं बहिष्कार का अर्थशास्त्र जिससे चीन की बौखलाहट और भारत के लाभ की अर्थनीति भी समझ में आएगी। चीन भारत को प्रतिवर्ष लगभग ४ लाख करोड़ रुपये या ६० अरब डॉलर का निर्यात करता है जबकि भारत से उसका आयात मात्र ५३ हज़ार करोड़ का है इस प्रकार भारत को चीन का शुद्ध निर्यात करीब साढ़े तीन लाख करोड़ का होता है. चीन के कुल २३०० अरब डॉलर के निर्यात में भारत को किये गए उसके निर्यात का प्रतिशत लगभग २ से २.५ प्रतिशत होता है.
चीनी उत्पाद |
भारत को होनेवाले चार लाख करोड़ के निर्यात में यदि आधा मजदूरी का हो तो यह आंकड़ा लगभग दो लाख करोड़ रुपये का होता है. चीन सस्ती मजदूरी के दम पर ही इतना निर्यात कर पाता है और यदि हम भारतीय रुपये में एक चीनी मजदुर की सालाना मजदूरी एक लाख रुपये मानें तो चीन के दो करोड़ श्रमिक भारतीय निर्यात पर निर्भर हैं. भारत द्वारा किये गए आयात में तीस प्रतिशत की कमी का अर्थ है ६० लाख चीनी मजदूरों की बेरोजगारी!!! यही चीन की चिंता का सबसे बड़ा कारण है और यहीं से भारत के लिए बड़े लाभ की सम्भावना शुरू होती है.
यदि भारतीय बाजार में चीनी घुसपैठ इसी प्रकार कम होता रहे और भारतीय उपभोक्ता स्वदेशी माल की और आकर्षित हो तो यही ६० हज़ार करोड़ रुपये हिंदुस्तान के मजदूरों को मिलेंगे और एक लाख रुपये वार्षिक के हिसाब से साथ लाख हिंदुस्तानी मजदूरों को रोजगार मिल जायेगा। साथ ही एक लाख बीस हज़ार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की अतिरिक्त बचत भी होगी। भारतीय उत्पादकों की बिक्री बढ़ेगी और उनका मुनाफा भी देश में ही रहेगा। साथ ही अतिरिक्त उत्पाद का निर्यात भी हो सकता है, जो की इस लाभ को और भी बढा देगा। इससे सरकारी खजाने में भी टैक्स के रूप में अतिरिक्त आय होगी जो की विकास के छक्के को थोड़ा और तेजी से घुमा देगी। है न भारत के लिए बड़ा फायदा !!
इससे दूसरा फायदा ये होगा की भारतीय निर्माता काम लागत में माल बनाने के लिए प्रेरित होंगे और उनकी उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में सुधार होगा जिसे वे वैश्विक प्रतिष्पर्धा में निखर कर आगे आयेंगे। "मेक इन इंडिया" और "मेक फॉर इंडिया" कार्यक्रमो को भी इससे संबल मिलेगा।
चीन की चिंता के और भी विषय है. भारत ही नहीं चीन के अन्य कई पड़ौसी देश भी चीन की दादागिरी से त्रस्त हैं परंतु उन्हें उससे बहार निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा. भारत के बहिष्कार से प्रेरणा ले कर वे भी चीनी सामानों का बहिष्कार कर सकते हैं और इससे चीन को दोहरा झटका लग सकता है. एक और कारण भी है. २००८-०९ में १२०० अरब डॉलर का चीनी निर्यात मात्र ६ साल में लगभग दुगुना हो कर २०१५-१६ में २३४२ अरब डॉलर तक पहुच गया था परंतु २०१५-१६ में चीनी मुद्रा युयान के अवमूल्यन के बाबजूद यह घट कर २२७४ अरब ही रह गया. २०१६-१७ में यह और भी घटने का अनुमान है. भारत के बहिष्कार से यह फासला और बड़ा भी हो सकता है.
यदि केवल सितंबर माह के आंकड़े को देखें तो २०१५ में जहाँ चीन ने २०५ अरब डॉलर का निर्यात किया था वहीँ सितंबर २०१६ में मात्र १८४ अरब डॉलर का अर्थात एक वर्ष में २१ अरब डॉलर या दस प्रतिशत की गिरावट! अप्रैल से सितंबर की छमाही में चीन ने केवल १०७५ अरब डॉलर का निर्यात किया है, यदि यह रफ़्तार बरकरार रहे तो भी २०१६-१७ में उसका निर्यात मुश्किल से २१५० अरब डॉलर तक ही पहुँच सकता है. इसमें और भी गिरावट की सम्भावना है. यह चीन को गंभीर में चिंता में डालने के लिए पर्याप्त है.
विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के कारण भारत सर्कार के लिए किसी देश के उत्पादों पर प्रतिवंध लगाना कठिन है और इसलिए हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी या उनके मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य ने बहिष्कार के लिए कोई आह्वान नहीं किया है न ही इस सम्वन्ध में कोई वयान दिया है. परंतु यह नियम भारतीय उपभोक्ता पर लागु नहीं होते। जनता किसी भी उत्पाद को खरीदने या न खरीदने के लिए स्वतंत्र है. चीन द्वारा शत्रुतापूर्ण रवैय्या अपनाते हुए पहले NSG में भारत की सदस्यता का विरोध किया जाना और भारत पर हुए आतंकवादी हमले के बाद पकिस्तान का साथ निभाया; ऐसी स्थिति में हिंदुस्तान की जनता ने चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर अपनी देश भक्ति का परिचय दिया और चीन को करारा झटका लगा. हमें ये मुहीम आगे भी जरी रखनी है और इससे भारत को बहुत बड़ा फायदा मिलनेवाला है.
पाक आतंकी मसूद अज़हर के समर्थक चीन का हो बहिष्कार
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ज्योति कोठारी,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
नरेंद्र मोदी विचार मंच
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