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Thursday, 16 October 2014

श्रमेव जयते और श्रम कानूनों में सुधार की आवश्यकता

श्रमेव जयते कार्यक्रम  का शुभारम्भ 
श्रमेव जयते! प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते योजना  की शुरुआत की. अभियान की शुरुआत करते हुए मोदीजी ने कहा की यह सत्यमेव जयते जैसा ही ताकतवर है. इस योजना के तहत सभी को भविष्यनिधि के लिए एक UID दिया जायेगा जिससे वो कहीं भी किसी भी जगह काम करे उसकी भविष्य निधि की रकम उसे खाते में जमा होगी। अभी तक ऐसा नहीं होता था और एक जगह काम छोड़ कर दूसरी जगह जाने से उसे रकम जमा करने या निकलने में बहुत परेशानी होती थी.

नरेंद्र मोदी ने कहा की भविष्यनिधि कहते में सत्ताईस हज़ार करोड़ रुपये जमा हैं जिसका कोई दावेदार नहीं है. इस UID के जरिये वोलोग भी इस पैसे को निकाल सकते हैं. साथ ही उन्होंने एक पोर्टल की भी शुरुआत की. इस योजना का एक उल्लेखनीय पहलु इंस्पेक्टर राज से लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों को मुक्ति दिलाना भी है. अब कोई भी निरीक्षक अपने मन से किसी भी सुक्ष्म् एवं लघु औद्योगिक इकाई में नहीं जा सकता है.

केंद्र सरकार ने श्रम कानून में सुधार किया है अब इन औद्योगिक इकाइयों को सोलह की जगह सिर्फ एक फॉर्म भरने की जरुरत है. छोटे उद्योगों को इससे बड़ी रहत मिलेगी। श्रम सुधर की दृष्टि से मोदी सरकार का यह बड़ा कदम है एवं मेक इन इंडिया अभियान को इससे वल मिलेगा।  हालांको भारत के श्रमिक संगठनों ने अपने पुराना राग अलापते हुए इसका विरोध किया है.

 अवसर पर उन्होंने दक्षता वृद्दि के उपायों पर भी चर्चा की एवं ITI से आनेवालों को भी सन्मान देने के लिए कहा. उन्होंने कहा की भारत में श्रम को सम्मान मिलना चाहिए।

भारत के श्रम कानूनों में बहुत सुधार की आवश्यकता है. यह पुराने ज़माने की सोच से बना हुआ कानून आज के युग के अनुसार बिलकुल भी नहीं है. आवश्यकता है की इसमें संशोधन किया जाये जिससे यह मज़दूर एवं मालिक दोनों के लिए हितकारी हो.

भारत के प्रसिद्द उद्योगपति घनश्यामदास स बिरला ने एक वार कहा था की  एक कर्मचारी को काम से निकलना अपनी पत्नी को तलाक़ देने से ज्यादा पेचीदा है. इस कठोर कानून की बजह से काम नहीं करनेवाले कर्मचरियों के आगे भी उद्योगपति एवं व्यापारी लाचार रहता है. मज़दूर संघों के आचरणों ने भी काम नहीं करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है. इससे देश के औद्योगिक माहौल पर विपरीत प्रभाव पड़ा है एवं देश से उद्योगों का पलायन होने लगा है. अब हम चीन के बने सामानो के मोहताज हो गए हैं.

ऐसा नहीं है की इन कानूनो से मज़दूरों का कोई विशेष भला हुआ हो. कोई भी एकतरफा कानून अपने वास्तविक उद्देश्यों की पूर्ती नहीं कर सकता।  देश में सिर्फ ६ प्रतिशत कर्मचारी संगठित क्षेत्र में हैं और केवल उन्हें ही श्रम कानूनों का लाभ मिलता है, शेष ९४ प्रतिशत वंचित ही रहते हैं. मज़दूर संघ भी उनके हीतोँ के लिए प्रायः आवाज़ नहीं उठाते।

यह देखा गया है की संगठित क्षेत्र के मज़दूरों/ कर्मचारियों का वेतन भत्ता उसी जैसे काम करनेवाले असंगठित/ अस्थायी कर्मचारियों से चार पांच गुना तक अधिक होता है. फिर भी वे अधिक वेतन भत्ते एवं सुविधाओं की मांग करते रहते हैं. देश के नागरिकों के साथ इतना भेदभाव क्यों? हार्बर एक नया वेतन आयोग बनता है और संगठित कर्मचारियों का वेतन जबरदस्त तरीके से बढ़ जाता है. इससे सरकारी खजाने पर भी बहुत बोझ पड़ता है और विकास के लिए धन की उपलब्धता कम हो जाती है. जिसका अंतिम नुकसान देश की गरीब जनता को ही भुगतना पड़ता है.

भारत का औद्योगिक क्षेत्र खासकर सूक्ष्म एवं लघु औद्योगिक इकाइयां संगठित क्षेत्र के मापदंडों के अनुसार ऊँचे वेतन भत्ते देने में सक्षम भी नहीं है. उसे बाजार की शक्तियों से लगातार जूझना पड़ता है, उसके पास अपने उत्पादों को बेचने, इकाइयों को चलने के लिए धन की व्यवस्था करने आदि में बहुत कठिनाइयां होती है. प्रायः समस्याओं से ग्रस्त हो कर ये इकाइयां बीमार हो जाती हैं एवं अंततोगत्वा उन्हें बंद भी करना पड़ता है.

यदी संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के बीच लाभ की इस खाई को कम किया जा सके तो बहुसंख्यक मज़दूरों को भी लाभ मिलेगा एवं औद्योगिक इकाइयां भी सुचारू रूप से चल पायेगी। हमें इस मानसिकता से निकलना पड़ेगा की उद्यमी एवं व्यापारी केवल शोषण करते हैं. हम ऐसा क्यों नहीं सोचते की उद्यमी एवं कामगार दोनों मिलकर ही उद्योग की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं.

एक खास बात की और विशेष रूप से ध्यान दिलाना चाहूंगा की कोई उद्यमी अपने कर्मचारी को नहीं निकाल सकता परन्तु कोई भी कर्मचारी जब चाहे तब काम छोड़ कर जा सकता है. आज के दिन में यह समस्या बहुत ही विकट हो चुकी है. अनेक छोटे उद्योग इस समस्या से जूझ रहे हैं एवं इस और न सरकार न ही श्रमिक संगठनों का इस और कोई ध्यान है. आज सूक्ष्म एवं लघु इकाइयों के मालिकों को यह पता नहीं होता की उनका कर्मचारी कल काम पर आएगा या नहीं। प्रायः कर्मचारी थोड़े से वतन वृद्धि के लालच में दूसरे इकाई में चला जाता है. इससे पूर्व औद्योगिक इकाई संकट में आ जाता है और उत्पादन में दिक्कत आ जाती है. कर्मचारियों के लिए भी ऐसा नियम होना चाहिए ताकि वे इस प्रकार काम छोड़ कर नहीं जा सकें।

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए श्रम कानूनों में सुधार की महती आवश्यकता है एवं देश के प्रधान मंत्री से निवेदन है की वे इस और ध्यान दें जिससे सबका साथ सबका विकास का उनका नारा सार्थक हो सके.

Suggestions to PMO 1: India needs more ITIs


Jyoti Kothari
Convener, Jaipur division
Prabhari, West Bengal,
Narendra Modi Vichar Manch


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(Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry)
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