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Tuesday, 28 June 2016

आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा जरुरी साक्षरता नहीं


जी हाँ, आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा जरुरी है साक्षरता नहीं। शिक्षित व्यक्ति अपनी आय का साधन बढ़ा सकता है और आये हुए धन को सहेज कर अमीर भी बन सकता है परन्तु केवल साक्षर व्यक्ति ये काम नहीं कर सकता। यहाँ शिक्षा और साक्षरता का अंतर समझना बहुत जरुरी है. शिक्षा का अर्थ है किसी उपयोगी कल को सीखना जबकि साक्षरता केवल मात्र अक्षर ज्ञान है.

मध्यप्रदेश की ग्रामीण महिलाएं दक्षता विकास कार्यक्रम में मुस्कराते हुए 
अंग्रेजों ने बड़ी चालाकी से शिक्षा को साक्षरता का पर्यायवाची बन दिया था. प्राचीन काल से ही भारत में शिक्षा पर जोर था और यहाँ के व्यक्ति ज्ञान विज्ञानं के क्षेत्र में काफी प्रगति कर चुके थे. इसी कारण उस समय भारत आर्थिक रूप से भी बहुत समृद्ध था. परन्तु उस समय लिखने और पढ़ने पर बहुत जोर नहीं था. वेद, जैन आगम और बौद्धों का त्रिपिटक, जो की ज्ञान विज्ञानं का खजाना था उन्हें हज़ारों वर्षों तक लिखा नहीं गया था, उन्हें कंठस्थ किया जाता था.

जब अंग्रेजो ने भारत पर अधिकार किया तब उन्हें लगा की शिक्षित और आर्थिक रूप से समृद्ध इस देश को ज्यादा दिन गुलाम बनाए रखना संभव नहीं। इसलिए उन्होंने एक चाल चली. "शिक्षा" को "साक्षरता" में बदल दिया, और इस प्रकार भारत की अधिकांश शिक्षित जनता निरक्षर घोषित हो गई. अंग्रेजों ने साक्षरता को बढ़ावा दिया, उन्हें अच्छी नौकरी दी और गुलामों की फौज तैयार कर दी. वास्तविक शिक्षित व्यक्ति का सन्मान नष्ट हो गया. उसके साथ ही भारत की आर्थिक प्रगति भी रुक गई और एक बेहद समृद्ध देश गरीबी के गर्त में समां गया.

Narendra Modi, Rajnath Singh and Ram Naik in Lucknow
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह व राज्यपाल राम नाईक लखनऊ में दक्षता प्रमाण पत्र देते हुए 
दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद भी हम अंग्रेजों की बनाई हुई (लार्ड मैकाले) शिक्षा व्यवस्था को ही ढोते रहे और हमारे विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों ने (शिक्षित?) बेरोजगारों की फौज खड़ी कर दी. इन तथाकथित शिक्षण संस्थानों से प्रति वर्ष लगभग १ करोड़ विद्यार्थी निकलते हैं लेकिन उनमे से अधिकांश रोजगार पाए लायक नहीं होते. उन्हें साक्षर जरूर बनाया जाता है परन्तु उनमे व्यवहारीक शिक्षा का नितांत अभाव होता है. स्वयं का व्यापार करना तो दूर प्रायः वे नौकरी करने लायक भी नहीं होते.

अभी हाल में ही जारी मानव पूंजी सूचकांक (Human Capital Index) की विश्व सूचि में भारत १०५ वे स्थान पर है जो की बहुत ही नीचे की ओर है. इस सूचकांक में ऊपर की ओर बढ़ने के लिए शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है. शिक्षा जब तक व्यवहारिक व रोजगारोन्मुखी नहीं होगी हम इस सूचकांक में अच्छा सतहन नहीं प्राप्त कर सकेंगे.

इन तथाकथित शिक्षण संस्थानों में से सरकारी संस्थानों में जनता की गाढ़ी कमाई का खरबों रूपया बर्बाद होता है और निजी शिक्षण संस्थायें एवं कोचिंग इंस्टिट्यूट खरबों रुपये का व्यापारी लाभ कमाती है. इससे भी बड़ी बीमारी ये है की अधिकांश माता-पिता डिग्री एवं नंबरों के मोह में पड़ कर अपना पैसा और बच्चों का भविष्य बर्बाद कर देते हैं.

डिग्री और नंबर के मोह में पड़े बिना यदि इन छात्रों को व्यवहारिक, जीवनोपयोगी, एवं रोजगारोन्मुखी शिक्षा दी जाये तो उनमे कार्यकुशलता बढ़ेगी और अच्छा रोजगार मिलेगा। उनमे व्यावसायिक दक्षता का विकास होगा। उनमे से ही उद्यमी, प्रवन्धक, व्यापारी आदि निकलेंगे और वे अन्य युवाओं को नौकरी भी देंगे। इस तरह से देश आर्थिक प्रगति की राह पर तेजी से आगे निकलेगा।

एंड्राइड एप्लिकेसन डेवलपमेंट में अपार सम्भावनाएं


सादर,
ज्योति कोठारी,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
नरेंद्र मोदी विचार मंच

चित्र १: By McKay Savage from London, UK (smiles and determination of rural Indian women #1) [CC BY 2.0 (http://creativecommons.org/licenses/by/2.0)], via Wikimedia Commons

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