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Monday 26 December 2016

मोदी पर राहुल के आरोप, शीला दीक्षित ने नकारा




नरेंद्र मोदी पर पिछले कुछ दिनों से राहुल गाँधी रिश्वतखोरी के झूठे और अनर्गल आरोप लगा रहे हैं. परंतु उन्ही की कोंग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित ने उसे नकार दिया है. शीला दीक्षित दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकीं हैं और अभी कोंग्रेस की और से उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार हैं.

Sheila Dikshit denies rahul gandhi allegation on narendra modi
आरोपों को नकारते हुए शीला दीक्षित 
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कुछ महीने पहले गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी द्वारा रिश्वत खाने का आरोप लगाया था. आयकर विभाग द्वारा छापेमारी के दौरान पाए गए कुछ डायरी नोट और कंप्यूटर एंट्रीज को आधार मानकर उन्होंने सहारा एवं बिड़ला परिवार से रिश्वत खाने का आरोप लगाया था. परंतु माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने इसे सबूत मानने से इनकार करते हुए उन्हें और प्रमाण पेश करने के लिए वक़्त दिया था. परंतु वे कोई नया दस्तावेज नहीं पेश कर पाए, इस पर सर्वोच्च न्यायलय के माननीय न्यायाधीशों ने उन्हें फटकार भी लगाई और सुनवाई की अगली तारिख ११ जनवरी निश्चित कर दी.

इन्ही दस्तावेजों को आधार बनाकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने डेढ़ महीने पहले उसी तथ्यहीन आरोपों का इस्तेमाल प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने के लिए करना शुरू कर दिया। अपनी राजनैतिक जमीन खोने के डर से बेहाल कोंग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी फिर से उसी पुराने आरोप को पेश कर दिया। उन्होंने यह कहा था की जब मैं बोलूंगा तो भूचाल आ जायेगा, परंतु खोदा पहाड़ निकली चुहिया। उनके पास कोई नए तथ्य नहीं थे और वही पुराने घिसे पीटे बेबुनियाद आरोप जड़ दिये।

इस बचकानी हरकत से राहुल गाँधी की ही जग हसाई हुई; वैसे भी लोगों ने उन्हें गंभीरता से लेना बंद कर दिया है. परंतु इससे भी बड़ी मुश्किल उनके लिए  कोंग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित ने कड़ी कर दी है. जिन दस्तावेजों के आधार पर नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाए जा रहे हैं उन्ही में शीला दिक्षीत का भी नाम है और उन्होंने इसे आधारहीन दस्तावेज बताया है. इसका अर्थ ये हुआ की जिन दस्तावेजों को राहुल गाँधी प्रामाणिक बता रहे हैं उन्ही दस्तावेजों को शीला दीक्षित आधारहीन बता रहीं हैं.

राहुल गाँधी अपने आधारहीन आरोपों और बेबुनियाद बातों के कारण जनमानस में अपनी विश्वसनीयता और प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं. अभी दो दिन पहले ही नोटबंदी को ९९% गरीब जनता पर आघात कह कर वे फंस चुके हैं. भारत की जनता यह पूछ रही है की राहुल गाँधी, ९९% गरीबी का जिम्मेदार कौन? उन्हें कुछ भी बोलने से पहले खासकर नरेंद्र मोदी जैसे कर्मठ, जुझारू एवं लोकप्रिय नेता पर ऊँगली उठाने से पहले कई बार सोच लेना चाहिए।

सादर,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,

#नरेंद्रमोदी #शीलादीक्षित #कोंग्रेस #उपाध्यक्ष #राहुलगाँधी #आरोप 

Sunday 25 December 2016

राहुल गाँधी, ९९% गरीबी का जिम्मेदार कौन?


भारत में ९९% गरीबी का जिम्मेदार कौन? राहुल गाँधी खुद जवाब दे.  कोंग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी आजकल कह रहे हैं की नोटबंदी में ९९ प्रतिशत गरीबों को नुक्सान और एक प्रतिशत अमीरों को फायदा हुआ है. यदि देश में आज भी निन्यानवे प्रतिशत जनता गरीब है तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या भारत की जनता या शासक?
और सभी जानते हैं की  स्वतंत्रता के बाद सबसे ज्यादा शासन किसने किया है?

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 
आज़ादी के बाद के ६९ वर्षों में से कोंग्रेस ने ५४ वर्ष तक देश में साहसं किया है. इनमे से बहुत बड़े समय तक राज्यों में भी कोंग्रेस की ही सरकार रही है. सबसे बड़ी बात ये है की कोंग्रेस के शासन काल के अधिकांश समय नेहरू-गाँधी परिवार का ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शासन रहा है. इस लिए यदि देश में आज भी निन्यानवे प्रतिशत लोग गरीब हैं तो इसकी जिम्मेदारी उनकी पार्टी और उनके परिवार को ही लेनी पड़ेगी. राहुल गाँधी को अपने परिवार और पार्टी की बिफलता की जिम्मेदारी लेनी ही चाहिए.

भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी 
स्वतंत्रता के बाद सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने, वे राहुल गाँधी के पिता राजीव गाँधी के नाना थे. १९४७ से १९६४ में अपनी मृत्यु तक वे ही देश के प्रधान मंत्री रह. उनका कार्यकाल १७ वर्षों का रहा. उनकी मृत्यु के बाद लालबहादुर शास्त्री १९६४ से १९६६ के बीच डेढ़ साल के लिए प्रधान मंत्री बने और छोटे समय में बड़ा काम किया। यद्यपि वे कोंग्रेस के ही थे परंतु नेहरू- गाँधी परिवार का नही होने के कारन कोंग्रेस ने ही उन्हें भुला दिया।

शास्त्री जी की असामयिक एवं रहस्यमय मृत्यु के बाद पंडित नेहरू की बेटी और राहुल गाँधी की दादी इंदिरा गाँधी भारत की प्रधान मंत्री बानी और १९६६ से १९७७, ग्यारह साल तक एकछत्र राज किया। इस बीच १९७६ में उन्होंने १९ महीने के लिए देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया।  उसके बाद १९७७ में हुए आम चुनाव में इंदिरा गाँधी और उनकी कोंग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा और मोरारजी देसाई देश के पहले गैरकोन्ग्रेसि प्रधानमंत्री बने. परंतु मात्र ढाई साल में ही उनकी सरकार को गिरा कर १९७९ में कोंग्रेस ने चौधरी चरण सिंह को देश का प्रधान मंत्री बना दिया। परंतु उनका कार्यकाल कुछ ही महीनों का रहा और फिर से इंदिरा गाँधी देश की प्रधान मंत्री बन गइं.

१९८० से १९८४ में अपनी मृत्यु तक वे ही प्रधान मंत्री रहीं और उसके बाद उनके बेटे और जवाहर लाल नेहरू के दोहिते राजीव गाँधी प्रधान मंत्री बने. राहुल गाँधी उन्ही राजीव गाँधी के बेटे हैं. १९८४ से १९८९ तक राजीव गाँधी प्रधान मंत्री रहे और उसके बाद के दो वर्षों में विश्वनाथ प्रताप सिंह और फिर चंद्रशेखर (कोन्ग्रेस्स के सहयोग से) देश के प्रधान मंत्री रहे. १९९१ में नरसिम्हा राव नेहरू-गाँधी परिवार के बहार के व्यक्ति के रूप में कोंग्रेसी प्रधान मंत्री बने और १९९६ तक पांच वर्ष इस पद पर बने रहे.

१९९६ से १९९८ तक अस्थिरता के दौर में देश ने दो वर्षों में तीन प्रधान मंत्री देखे अटल विहारी वाजपेयी, एच डी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल। १९९८ से २००४ तक देश को पहला गैर कोंग्रेसी प्रधान मंत्री मिला जिसने अपना एक कार्यकाल पूरा किया और वो थे अटल विहारी वाजपेयी

२००४ में संप्रग सरकार बानी जिसका नेतृत्व मनमोहन सिंह ने २०१४ तक किया। इस समय सत्ता की कुंजी पूरी तरह से राहुल गाँधी की माता सोनिया गाँधी के हाथ में थी. २०१४ में कोंग्रेस की करारी हार के बाद ही नरेंद्र मोदी देश के प्रधान मंत्री बने और पिछले ढाई वर्षों से देश को विकास की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं.

नोटबंदी के बाद उत्पन्न स्थिति का राजनैतिक फायदा उठाने के लिए राहुल गाँधी ने जो बयां देना शुरू किया वह अब उनकेही गले की फांस बनने जा रहा है. बगैर काम किये केवल आरोपों की राजनीती अब चलनेवाली नहीं है. ऊपर लिखे हुए तथ्य यह बताते हैं की राहुल गाँधी के अपने ही परिवार ने ३७ वर्ष तक भारत में राज किया है; नेहरू ने १७ साल, इंदिरा ने १५ साल और राजीव ने ५ साल. इसके अलावा १० वर्ष मनमोहन सिंह के जोड़ लें जिसमे अप्रत्यक्ष रूप से सोनिया गाँधी का ही राज था तो यह आंकड़ा ४७ वर्षों का होता है. ६९ वर्षों में से ४७ वर्ष अर्थात दो तिहाई समय तो राहुल गाँधी के परिवार को ही मिला। इसमें अन्य कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल जोड़ लें तो यह ५४ वर्ष होता है.  देश की अन्य सभी पार्टियों ने मिल कर भी अब तक केवल १५ वर्ष से भी काम शासन किया है.

अतः विचारणीय बिंदु यह है की यदि आज भी देश में निन्यानवे प्रतिशत (९९%) जनता गरीब है तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या नरेंद्र मोदी, अटल विहारी वाजपेयी या भाजपा? निश्चित रूप से नहीं। इसका दायित्व तो कोंग्रेस और खास कर नेहरू-गाँधी परिवार पर ही जाता है जो आज़ादी के बाद अधिकांश समय देश की सत्ता में रही. कालाधन और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का श्रेय भी इन्ही को जाता है जो हमेशा भ्रष्टाचार के विरोध में तो बोलते रहे पर अंदर ही अंदर उसे बढ़ावा भी देते रहे.  राहुल गाँधी को सलाह है की कुछ भी बोलने से पहले अपने गिरेवां में झांक कर देख लें बर्न ऐसे बयां तो उन्ही पर पलटवार करेंगे.

सादर,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,

#राहुल गाँधी, #गरीबी #जिम्मेदार #नोटबंदी, #नरेंद्र मोदी #अटल #विहारी #वाजपेयी #नेहरू-गाँधी #परिवार


Sunday 4 December 2016

भारत में नोटबंदी को व्यापक जनसमर्थन


भारत में नोटबंदी को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा हैप्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के इस कदम की देश-विदेश में सभी जगह सराहना हो रही है. विरोधी दल बौखलाहट में ऊलजलूल वक्तव्य दे रहे हैं और संसद को ठप कर देश का बेसकीमती धन और समय बर्बाद कर रहे हैं. कोंग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों का भारत बंद का आह्वान निष्फल हो गया और उन्हें कहीं भी जनसमर्थन नहीं मिल पाया। देश की जनता प्रधान मंत्री के इस फैसले के साथ पूरी तरह कड़ी है और विरोधी दलों को अपनी राजनैतिक जमीन खिसकते हुए दिख रही है. 




देश की जनता को भरोसा है की नरेंद्र मोदी कालेधन को जड़ से समाप्त करने के लिए कटिवद्ध हैं और कालेधन को अपने हथियार बनाने वाले राजनैतिक दलों को वो सबक सीखना चाहती है. राजनैतिक दलों में भी सबसे ज्यादा बौखलाहट आम आदमी पार्टी (अरविन्द केजरीवाल), तृणमूल कोंग्रेस(ममता बनर्जी), बहुजन समाज पार्टी (मायावती) में देखी जा सकती है. वामदलों ने तो बौखलाहट में भारत बंद का ही आह्वान कर डाला जो किसी भी प्रकार से सफल नहीं रहा. केवल केरल, जहाँ उनकी सत्ता है वहां इसे कुछ सफलता मिली। कोंग्रेस पार्टी का तो और भी बुरा हाल है, उसे समझ ही नहीं आ रहा की नोटबंदी के इस कदम का समर्थन करे या विरोध! 




पांच सौ और हज़ार के नोट बंद करने के फैसले के अगले दिन से ही नोटबंदी के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा प्रारम्भ की थी और इससे होनेवाले फायदों से लोगों को अवगत कराना शुरू किया था. अब तक इन लेखों को हज़ारों लोगों ने पढ़ा है और सोसल मिडिया में शेयर भी किया है. अभी आगे भी इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाती रहेगी। 

कृपया इन लेखों को पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएं। 
५००, १००० के नोट बंद होने का भारत की अर्थनीति पे असर

जाली नोट होंगे बाहर, घटेगा कालाधन: नोट बंद होने का असर

नोट बंद होने का असर: जनधन व अन्य बैंक खातों में बढ़ेगा लेनदेन

नोटबंदी से घटेगी मुद्रास्फीति और महंगाई

नोटबंदी से जमीन जायदादों की कीमत और कम होगी

नोटबंदी से नशाबंदी, सट्टे के कारोबार पे रोक


सादर,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
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