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Monday 26 December 2016

मोदी पर राहुल के आरोप, शीला दीक्षित ने नकारा




नरेंद्र मोदी पर पिछले कुछ दिनों से राहुल गाँधी रिश्वतखोरी के झूठे और अनर्गल आरोप लगा रहे हैं. परंतु उन्ही की कोंग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित ने उसे नकार दिया है. शीला दीक्षित दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकीं हैं और अभी कोंग्रेस की और से उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार हैं.

Sheila Dikshit denies rahul gandhi allegation on narendra modi
आरोपों को नकारते हुए शीला दीक्षित 
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कुछ महीने पहले गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी द्वारा रिश्वत खाने का आरोप लगाया था. आयकर विभाग द्वारा छापेमारी के दौरान पाए गए कुछ डायरी नोट और कंप्यूटर एंट्रीज को आधार मानकर उन्होंने सहारा एवं बिड़ला परिवार से रिश्वत खाने का आरोप लगाया था. परंतु माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने इसे सबूत मानने से इनकार करते हुए उन्हें और प्रमाण पेश करने के लिए वक़्त दिया था. परंतु वे कोई नया दस्तावेज नहीं पेश कर पाए, इस पर सर्वोच्च न्यायलय के माननीय न्यायाधीशों ने उन्हें फटकार भी लगाई और सुनवाई की अगली तारिख ११ जनवरी निश्चित कर दी.

इन्ही दस्तावेजों को आधार बनाकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने डेढ़ महीने पहले उसी तथ्यहीन आरोपों का इस्तेमाल प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने के लिए करना शुरू कर दिया। अपनी राजनैतिक जमीन खोने के डर से बेहाल कोंग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी फिर से उसी पुराने आरोप को पेश कर दिया। उन्होंने यह कहा था की जब मैं बोलूंगा तो भूचाल आ जायेगा, परंतु खोदा पहाड़ निकली चुहिया। उनके पास कोई नए तथ्य नहीं थे और वही पुराने घिसे पीटे बेबुनियाद आरोप जड़ दिये।

इस बचकानी हरकत से राहुल गाँधी की ही जग हसाई हुई; वैसे भी लोगों ने उन्हें गंभीरता से लेना बंद कर दिया है. परंतु इससे भी बड़ी मुश्किल उनके लिए  कोंग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित ने कड़ी कर दी है. जिन दस्तावेजों के आधार पर नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाए जा रहे हैं उन्ही में शीला दिक्षीत का भी नाम है और उन्होंने इसे आधारहीन दस्तावेज बताया है. इसका अर्थ ये हुआ की जिन दस्तावेजों को राहुल गाँधी प्रामाणिक बता रहे हैं उन्ही दस्तावेजों को शीला दीक्षित आधारहीन बता रहीं हैं.

राहुल गाँधी अपने आधारहीन आरोपों और बेबुनियाद बातों के कारण जनमानस में अपनी विश्वसनीयता और प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं. अभी दो दिन पहले ही नोटबंदी को ९९% गरीब जनता पर आघात कह कर वे फंस चुके हैं. भारत की जनता यह पूछ रही है की राहुल गाँधी, ९९% गरीबी का जिम्मेदार कौन? उन्हें कुछ भी बोलने से पहले खासकर नरेंद्र मोदी जैसे कर्मठ, जुझारू एवं लोकप्रिय नेता पर ऊँगली उठाने से पहले कई बार सोच लेना चाहिए।

सादर,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,

#नरेंद्रमोदी #शीलादीक्षित #कोंग्रेस #उपाध्यक्ष #राहुलगाँधी #आरोप 

Sunday 25 December 2016

राहुल गाँधी, ९९% गरीबी का जिम्मेदार कौन?


भारत में ९९% गरीबी का जिम्मेदार कौन? राहुल गाँधी खुद जवाब दे.  कोंग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी आजकल कह रहे हैं की नोटबंदी में ९९ प्रतिशत गरीबों को नुक्सान और एक प्रतिशत अमीरों को फायदा हुआ है. यदि देश में आज भी निन्यानवे प्रतिशत जनता गरीब है तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या भारत की जनता या शासक?
और सभी जानते हैं की  स्वतंत्रता के बाद सबसे ज्यादा शासन किसने किया है?

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 
आज़ादी के बाद के ६९ वर्षों में से कोंग्रेस ने ५४ वर्ष तक देश में साहसं किया है. इनमे से बहुत बड़े समय तक राज्यों में भी कोंग्रेस की ही सरकार रही है. सबसे बड़ी बात ये है की कोंग्रेस के शासन काल के अधिकांश समय नेहरू-गाँधी परिवार का ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शासन रहा है. इस लिए यदि देश में आज भी निन्यानवे प्रतिशत लोग गरीब हैं तो इसकी जिम्मेदारी उनकी पार्टी और उनके परिवार को ही लेनी पड़ेगी. राहुल गाँधी को अपने परिवार और पार्टी की बिफलता की जिम्मेदारी लेनी ही चाहिए.

भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी 
स्वतंत्रता के बाद सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने, वे राहुल गाँधी के पिता राजीव गाँधी के नाना थे. १९४७ से १९६४ में अपनी मृत्यु तक वे ही देश के प्रधान मंत्री रह. उनका कार्यकाल १७ वर्षों का रहा. उनकी मृत्यु के बाद लालबहादुर शास्त्री १९६४ से १९६६ के बीच डेढ़ साल के लिए प्रधान मंत्री बने और छोटे समय में बड़ा काम किया। यद्यपि वे कोंग्रेस के ही थे परंतु नेहरू- गाँधी परिवार का नही होने के कारन कोंग्रेस ने ही उन्हें भुला दिया।

शास्त्री जी की असामयिक एवं रहस्यमय मृत्यु के बाद पंडित नेहरू की बेटी और राहुल गाँधी की दादी इंदिरा गाँधी भारत की प्रधान मंत्री बानी और १९६६ से १९७७, ग्यारह साल तक एकछत्र राज किया। इस बीच १९७६ में उन्होंने १९ महीने के लिए देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया।  उसके बाद १९७७ में हुए आम चुनाव में इंदिरा गाँधी और उनकी कोंग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा और मोरारजी देसाई देश के पहले गैरकोन्ग्रेसि प्रधानमंत्री बने. परंतु मात्र ढाई साल में ही उनकी सरकार को गिरा कर १९७९ में कोंग्रेस ने चौधरी चरण सिंह को देश का प्रधान मंत्री बना दिया। परंतु उनका कार्यकाल कुछ ही महीनों का रहा और फिर से इंदिरा गाँधी देश की प्रधान मंत्री बन गइं.

१९८० से १९८४ में अपनी मृत्यु तक वे ही प्रधान मंत्री रहीं और उसके बाद उनके बेटे और जवाहर लाल नेहरू के दोहिते राजीव गाँधी प्रधान मंत्री बने. राहुल गाँधी उन्ही राजीव गाँधी के बेटे हैं. १९८४ से १९८९ तक राजीव गाँधी प्रधान मंत्री रहे और उसके बाद के दो वर्षों में विश्वनाथ प्रताप सिंह और फिर चंद्रशेखर (कोन्ग्रेस्स के सहयोग से) देश के प्रधान मंत्री रहे. १९९१ में नरसिम्हा राव नेहरू-गाँधी परिवार के बहार के व्यक्ति के रूप में कोंग्रेसी प्रधान मंत्री बने और १९९६ तक पांच वर्ष इस पद पर बने रहे.

१९९६ से १९९८ तक अस्थिरता के दौर में देश ने दो वर्षों में तीन प्रधान मंत्री देखे अटल विहारी वाजपेयी, एच डी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल। १९९८ से २००४ तक देश को पहला गैर कोंग्रेसी प्रधान मंत्री मिला जिसने अपना एक कार्यकाल पूरा किया और वो थे अटल विहारी वाजपेयी

२००४ में संप्रग सरकार बानी जिसका नेतृत्व मनमोहन सिंह ने २०१४ तक किया। इस समय सत्ता की कुंजी पूरी तरह से राहुल गाँधी की माता सोनिया गाँधी के हाथ में थी. २०१४ में कोंग्रेस की करारी हार के बाद ही नरेंद्र मोदी देश के प्रधान मंत्री बने और पिछले ढाई वर्षों से देश को विकास की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं.

नोटबंदी के बाद उत्पन्न स्थिति का राजनैतिक फायदा उठाने के लिए राहुल गाँधी ने जो बयां देना शुरू किया वह अब उनकेही गले की फांस बनने जा रहा है. बगैर काम किये केवल आरोपों की राजनीती अब चलनेवाली नहीं है. ऊपर लिखे हुए तथ्य यह बताते हैं की राहुल गाँधी के अपने ही परिवार ने ३७ वर्ष तक भारत में राज किया है; नेहरू ने १७ साल, इंदिरा ने १५ साल और राजीव ने ५ साल. इसके अलावा १० वर्ष मनमोहन सिंह के जोड़ लें जिसमे अप्रत्यक्ष रूप से सोनिया गाँधी का ही राज था तो यह आंकड़ा ४७ वर्षों का होता है. ६९ वर्षों में से ४७ वर्ष अर्थात दो तिहाई समय तो राहुल गाँधी के परिवार को ही मिला। इसमें अन्य कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल जोड़ लें तो यह ५४ वर्ष होता है.  देश की अन्य सभी पार्टियों ने मिल कर भी अब तक केवल १५ वर्ष से भी काम शासन किया है.

अतः विचारणीय बिंदु यह है की यदि आज भी देश में निन्यानवे प्रतिशत (९९%) जनता गरीब है तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या नरेंद्र मोदी, अटल विहारी वाजपेयी या भाजपा? निश्चित रूप से नहीं। इसका दायित्व तो कोंग्रेस और खास कर नेहरू-गाँधी परिवार पर ही जाता है जो आज़ादी के बाद अधिकांश समय देश की सत्ता में रही. कालाधन और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का श्रेय भी इन्ही को जाता है जो हमेशा भ्रष्टाचार के विरोध में तो बोलते रहे पर अंदर ही अंदर उसे बढ़ावा भी देते रहे.  राहुल गाँधी को सलाह है की कुछ भी बोलने से पहले अपने गिरेवां में झांक कर देख लें बर्न ऐसे बयां तो उन्ही पर पलटवार करेंगे.

सादर,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,

#राहुल गाँधी, #गरीबी #जिम्मेदार #नोटबंदी, #नरेंद्र मोदी #अटल #विहारी #वाजपेयी #नेहरू-गाँधी #परिवार


Sunday 4 December 2016

भारत में नोटबंदी को व्यापक जनसमर्थन


भारत में नोटबंदी को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा हैप्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के इस कदम की देश-विदेश में सभी जगह सराहना हो रही है. विरोधी दल बौखलाहट में ऊलजलूल वक्तव्य दे रहे हैं और संसद को ठप कर देश का बेसकीमती धन और समय बर्बाद कर रहे हैं. कोंग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों का भारत बंद का आह्वान निष्फल हो गया और उन्हें कहीं भी जनसमर्थन नहीं मिल पाया। देश की जनता प्रधान मंत्री के इस फैसले के साथ पूरी तरह कड़ी है और विरोधी दलों को अपनी राजनैतिक जमीन खिसकते हुए दिख रही है. 




देश की जनता को भरोसा है की नरेंद्र मोदी कालेधन को जड़ से समाप्त करने के लिए कटिवद्ध हैं और कालेधन को अपने हथियार बनाने वाले राजनैतिक दलों को वो सबक सीखना चाहती है. राजनैतिक दलों में भी सबसे ज्यादा बौखलाहट आम आदमी पार्टी (अरविन्द केजरीवाल), तृणमूल कोंग्रेस(ममता बनर्जी), बहुजन समाज पार्टी (मायावती) में देखी जा सकती है. वामदलों ने तो बौखलाहट में भारत बंद का ही आह्वान कर डाला जो किसी भी प्रकार से सफल नहीं रहा. केवल केरल, जहाँ उनकी सत्ता है वहां इसे कुछ सफलता मिली। कोंग्रेस पार्टी का तो और भी बुरा हाल है, उसे समझ ही नहीं आ रहा की नोटबंदी के इस कदम का समर्थन करे या विरोध! 




पांच सौ और हज़ार के नोट बंद करने के फैसले के अगले दिन से ही नोटबंदी के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा प्रारम्भ की थी और इससे होनेवाले फायदों से लोगों को अवगत कराना शुरू किया था. अब तक इन लेखों को हज़ारों लोगों ने पढ़ा है और सोसल मिडिया में शेयर भी किया है. अभी आगे भी इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाती रहेगी। 

कृपया इन लेखों को पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएं। 
५००, १००० के नोट बंद होने का भारत की अर्थनीति पे असर

जाली नोट होंगे बाहर, घटेगा कालाधन: नोट बंद होने का असर

नोट बंद होने का असर: जनधन व अन्य बैंक खातों में बढ़ेगा लेनदेन

नोटबंदी से घटेगी मुद्रास्फीति और महंगाई

नोटबंदी से जमीन जायदादों की कीमत और कम होगी

नोटबंदी से नशाबंदी, सट्टे के कारोबार पे रोक


सादर,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
#पांचसौ #हज़ार #नोट, #भारत #नोटबंदी #विरोधीदल #समर्थन #संसद #ठप

Friday 28 October 2016

चीन की बौखलाहट: बहिष्कार से भारत को होगा बड़ा लाभ


भारत ने चीन के सामान का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है और इससे चीन बौखला गया है. भारतीयों द्वारा लगातार किये जा रहे चीनी समानों के बहिष्कार को चीनी मिडिया प्रमुखता से छाप रहा है. साथ ही चीन अपने चिरपरिचित अंदाज़ में धमकियाँ भी दे रहा है और यह भी कह रहा है की इससे चीन को कोई फर्क नहीं पड़ेगा परंतु भारत को ही नुक्सान होगा। इस बात से ही चीन की बौखलाहट साफ़ नज़र आ रही है. पर इससे भारत को बड़ा लाभ होगा और चीन को नुकसान।

भारतीय उत्पादों से सजी दुकान 

भारत अपने कुल आयात का १६ प्रतिशत चीन से आयात करता है जबकि चीन के कुल निर्यात (जो की काफी बड़ा है) का केवल दो प्रतिशत भारत को होता है. एक अनुमान के अनुसार भारत में चीनी माल की बिक्री में लगभग तीस प्रतिशत की कमी आई है. आंकड़ों के लिहाज़ से देखें तो चीन के कुल निर्यात का यह मात्र ०.६ प्रतिशत है; ऐसी स्थिति में चीन यह दर्शा रहा है की इससे उसकी अर्थनीति को कोई बड़ा नुक्सान नहीं हो रहा है. सतही रूप से यह बात सही भी लगती है, परंतु बात इतनी सीधी नहीं है.

आइये देखते और समझते हैं बहिष्कार का अर्थशास्त्र जिससे चीन की बौखलाहट और भारत के लाभ की अर्थनीति भी समझ में आएगी। चीन भारत को प्रतिवर्ष लगभग ४ लाख करोड़ रुपये या ६० अरब डॉलर का निर्यात करता है जबकि भारत से उसका आयात मात्र ५३ हज़ार करोड़ का है इस प्रकार भारत को चीन का शुद्ध निर्यात करीब साढ़े तीन लाख करोड़ का होता है. चीन के कुल २३०० अरब डॉलर के निर्यात में भारत को किये गए उसके निर्यात का प्रतिशत लगभग २ से २.५ प्रतिशत होता है.

चीनी उत्पाद 
चीन के कुल निर्यात में बड़ा प्रतिशत अमरीका, यूरोप, मध्य एशिया एवं जापान का है. परंतु इन देशों में ज्यादातर महंगे सामानों का निर्यात होता है जबकि भारत में ज्यादातर सस्ते माल का. हम यह जानते हैं की महंगे माल की तुलना में सस्ते माल के निर्माण में मजदूरी का प्रतिशत अधिक होता है  प्रायः महंगे सामान का रिजेक्सन (अपशिष्ट) भी इसमें शामिल हो जाता है. ऐसी स्थिति में सस्ते सामान के निर्माण में ज्यादा मजदूरी व ज्यादा मजदूर लगते हैं जबकि महंगे माल को बनाने में कच्चे माल व तकनीक की लागत अधिक होती है. सस्ते माल का निर्यात (जो की भारत में अधिक होता है) ज्यादा होने से ज्यादा लोगों को मजदूरी अर्थात रोजगार मिलता है और उस निर्यात में कमी आने से उसके उत्पादक श्रमिकों में बेरोजगारी का खतरा रहता है.

भारत को होनेवाले चार लाख करोड़ के निर्यात में यदि आधा मजदूरी का हो तो यह आंकड़ा लगभग दो लाख करोड़ रुपये का होता है. चीन सस्ती मजदूरी के दम पर ही इतना निर्यात कर पाता है और यदि हम भारतीय रुपये में एक चीनी मजदुर की सालाना मजदूरी एक लाख रुपये मानें तो चीन के दो करोड़ श्रमिक भारतीय निर्यात पर निर्भर हैं. भारत द्वारा किये गए आयात में तीस प्रतिशत की कमी का अर्थ है ६० लाख चीनी मजदूरों की बेरोजगारी!!! यही चीन की चिंता का सबसे बड़ा कारण है और यहीं से भारत के लिए बड़े लाभ की सम्भावना शुरू होती है.

यदि भारतीय बाजार में चीनी घुसपैठ इसी प्रकार कम होता रहे और भारतीय उपभोक्ता स्वदेशी माल की और आकर्षित हो तो यही ६० हज़ार करोड़ रुपये हिंदुस्तान के मजदूरों को मिलेंगे और एक लाख रुपये वार्षिक के हिसाब से साथ लाख हिंदुस्तानी मजदूरों को रोजगार मिल जायेगा। साथ ही एक लाख बीस हज़ार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की अतिरिक्त बचत भी होगी। भारतीय उत्पादकों की बिक्री बढ़ेगी और उनका मुनाफा भी देश में ही रहेगा। साथ ही अतिरिक्त उत्पाद का निर्यात भी हो सकता है, जो की इस लाभ को और भी बढा देगा। इससे सरकारी खजाने में भी टैक्स के रूप में अतिरिक्त आय होगी जो की विकास के छक्के को थोड़ा और तेजी से घुमा देगी। है न भारत के लिए बड़ा फायदा !!

इससे दूसरा फायदा ये होगा की भारतीय निर्माता काम लागत में माल बनाने के लिए प्रेरित होंगे और उनकी उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में सुधार होगा जिसे वे वैश्विक प्रतिष्पर्धा में निखर कर आगे आयेंगे। "मेक इन इंडिया" और "मेक फॉर इंडिया"  कार्यक्रमो को भी इससे संबल मिलेगा।

चीन की चिंता के और भी विषय है. भारत ही नहीं चीन के अन्य कई पड़ौसी देश भी चीन की दादागिरी से त्रस्त हैं परंतु उन्हें उससे बहार निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा. भारत के बहिष्कार से प्रेरणा ले कर वे भी चीनी सामानों का बहिष्कार कर सकते हैं और इससे चीन को दोहरा झटका लग सकता है. एक और कारण भी है. २००८-०९ में १२०० अरब डॉलर का चीनी निर्यात मात्र ६ साल में लगभग दुगुना हो कर २०१५-१६ में २३४२ अरब डॉलर तक पहुच गया था परंतु २०१५-१६ में चीनी मुद्रा युयान के अवमूल्यन के बाबजूद यह घट कर २२७४ अरब ही रह गया. २०१६-१७ में यह और भी घटने का अनुमान है. भारत के बहिष्कार से यह  फासला और बड़ा भी हो सकता है.

यदि केवल सितंबर माह के आंकड़े को देखें तो २०१५ में जहाँ चीन ने २०५ अरब डॉलर का निर्यात किया था वहीँ सितंबर २०१६ में मात्र १८४ अरब डॉलर का अर्थात एक वर्ष में २१ अरब डॉलर या दस प्रतिशत की गिरावट! अप्रैल से सितंबर की छमाही में चीन ने केवल १०७५ अरब डॉलर का निर्यात किया है, यदि यह रफ़्तार बरकरार रहे तो भी २०१६-१७ में उसका निर्यात मुश्किल से २१५० अरब डॉलर तक ही पहुँच सकता है. इसमें और भी गिरावट की सम्भावना है. यह चीन को गंभीर में चिंता में डालने के लिए पर्याप्त है.

विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के कारण भारत सर्कार के लिए किसी देश के उत्पादों पर प्रतिवंध लगाना कठिन है और इसलिए हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी या उनके मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य ने बहिष्कार के लिए कोई आह्वान नहीं किया है न ही इस सम्वन्ध में कोई वयान दिया है. परंतु यह नियम भारतीय उपभोक्ता पर लागु नहीं होते। जनता किसी भी उत्पाद को खरीदने या न खरीदने के लिए स्वतंत्र है. चीन द्वारा शत्रुतापूर्ण रवैय्या अपनाते हुए पहले NSG में भारत की सदस्यता का विरोध किया जाना और  भारत पर हुए आतंकवादी हमले के बाद पकिस्तान का साथ निभाया; ऐसी स्थिति में हिंदुस्तान की जनता ने चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर अपनी देश भक्ति का परिचय दिया और चीन को करारा झटका लगा. हमें ये मुहीम आगे भी जरी रखनी है और इससे भारत को बहुत बड़ा फायदा मिलनेवाला है.

पाक आतंकी मसूद अज़हर के समर्थक चीन का हो बहिष्कार

#अर्थनीति, #आयात #निर्यात, #चीनीउत्पाद #बहिष्कार, #भारत #लाभ, #भारतीय #उपभोक्ता

सादर,
ज्योति कोठारी,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
नरेंद्र मोदी विचार मंच
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Saturday 1 October 2016

पाक आतंकी मसूद अज़हर के समर्थक चीन का हो बहिष्कार


 चीन ने संयुक्त राष्ट्र संघ में फिर से पाक आतंकी मसूद अज़हर का पक्ष लिया है. मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आतंकवादी घोषित करवाने के लिए भारत ने जो प्रक्रिया शुरू की थी आज चीन ने उस पर वीटो कर दिया जिससे यह प्रस्ताव पास नहीं हो सका. अब हमें चीन में निर्मित सामानों के बहिष्कार के लिए आगे आना होगा।

आतंकवादी मसूद अज़हर 
चीन ने ऐसी हरकतें पहले भी की है. इसी वर्ष जून महीने में चीन ने भारत की NSG सदस्यता के मुद्दे पर भी अड़ंगा लगाया था और भारत की सदस्यता के रस्ते में रोड़ा अटकाया था. चीन के अलावा सभी देश भारत के NSG सदस्यता पक्ष में थे. परंतु चीन के विरोध के कारण भारत परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य नहीं बन पाया था.

पठानकोट एवं उरी में हुए आतंकी हमले के भारत ने सख्त रुख अपनाते हुए पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अभियान चलाया एवं इस काम में भारत को अभूतपूर्व अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला।  भारत के पडोसी देशों सहित विश्वभर के देशों ने भारत के रुख  समर्थन किया एवं पाकिस्तान अलग थलग पड़ने लग गया है. इस बीच भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक करके ७ आतंकवादी कैम्पों को नष्ट कर और लगभग ५० आतंकवादियों को मर कर पाकिस्तान को उसकी नापाक हरकतों का करार जवाब दिया है. इससे पाकिस्तान की सेना, हुक्मरान, एवं आतंकवादी बौखला गए हैं.

अमरीका, ब्रिटेन, रूस जैसे प्रमुख देशों ने पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ गंभीर चेतावनी दी है. अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान एवं श्रीलंका जैसे भारत के पड़ौसी देशों ने भारत का साथ देते हुए पाकिस्तान में होनेवाले SAARC सम्मलेन का बहिष्कार किया है. जब सारी दुनिया भारत का समर्थन एवं पाकिस्तान व आतंकवाद के खिलाफ खड़ी है तब भी चीन ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में आतंकवादी मसूद अज़हर का पक्ष लिया है और उसे आतंकवादी घोषित करने के भारत के प्रस्ताव का विरोध किया है. चीन की ऐसी भारत विरोधी रुख का कड़ा जवाब देना जरुरी है.दरअसल चीन इस क्षेत्र में महाशक्ति की तरह व्यव्हार कर रहा है और भारत का लगातार शक्तिशाली होना उसे कतई पसंद नहीं आ रहा है. इसीलिए वो लगातार भारत का विरोध और पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है.

Update: अभी एक समाचार और मिला है की चीन ने ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का पानी रोक दिया है जिससे तिब्बत से भारत की ओर आने वाले पानी में कमी हो जाएगी। ऐसा करके भी चीन पाकिस्तान को ही मदद पंहुचा रहा है क्योंकि आतंकवादी हमलों के वीच भारत ने सिंधु नदी जल समझौते की समीक्षा करना प्रारम्भ कर दिया है और इससे पाकिस्तान दवाव में है.

चीनी निर्यात 
China Export Treemap from MIT-Harvard Economic Observatory By R Hausmann, Cesar Hidalgo, et. al. Creative Commons Attribution-Share alike 3.0 Unported license. See permission to share at //atlas.media.mit.edu/about/permissions/ [CC BY-SA 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)], via Wikimedia Commons

चीन को सबक सीखने के लिए यह जरुरी है की उसे आर्थिक मोर्चे पर मात दी जाये। लगातार दो दशक तक तीव्र आर्थिक विकास के बाद अब उसकी अर्थनीति ढलान पर है और चीन कई प्रकार की आर्थिक समस्यायों से जूझ रहा है. निर्यात आधारित उसकी अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी के कारन घोर संकट में है. भारत चीनी सामान का बड़ा बाज़ार है और वह यहाँ पर अरबों डॉलर का निर्यात करता है. जबकि भारत से उसका आयात तुलनात्मक रूप से काफी काम है. विश्व व्यापर संगठन के नियमों के अनुसार भारत चीन से आयात पर प्रतिवंध नहीं लगा सकता। इसलिए यहाँ के राष्ट्र भक्त नागरिकों को ही यह कदम उठाना पड़ेगा और चीनी सामान का बहिष्कार करना होगा।

यदि भारत के लोग चीनी सामान खरीदने से इनकार कर दें तो इससे चीन की अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगेगा और उसकी आर्थिक तरक्की रुक जाएगी। मंदी की मार झेल रहे चीन के लिए यह झटका सहन करना आसान नहीं होगा और उसे अपनी भारत विरोधी हरकतों से बाज आना पड़ेगा। इससे उसकी पाकिस्तान परस्त नीति को भी जोरदार झटका लगेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मौसी एवं उनकी सर्कार ने पाकिस्तान को धूल भी चटाया है और उसे करार झटका भी दिया है. अब हम राष्ट्र भक्त भारतीयों को पाकिस्तान के दोस्त चीन को सबक सीखना चाहिए. मोदी जी ने जो करना था कर दिया और आगे भी करते रहेंगे, अब हमारी बारी है की हम चीनी उत्पादों का बहिष्कार करें और चीन को सबक सिखाएं, ध्यान रखें भारत को आगे बढ़ने के लिए चीन को सबक सीखाना जरुरी है.

विशेष आग्रह
अभी नवरात्री और दीवाली हैं, चीन 3000 करोड़ की लाइट बेचती हैं. अपील है की कोई न खरीदे।

२ अक्टूबर गाँधीजी व शास्त्री जी के के जन्मदिन पर यह प्रतिज्ञा करे कि स्वदेशी अपनाएंगे। चीन को करारा जवाब देंगे।
विशेष सूचना

आज कल चीन के सामान पर Made in China नहीं लिखा होता है.  अब लिखा आता है,  Made in PRC मतलब People Republic of China.  सभी से शेयर करे. चीनी सामान का बहिष्कार करें।

आइये हम सब मिलकर राष्ट्रधर्म निभाएं!

सादर,
ज्योति कोठारी,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
नरेंद्र मोदी विचार मंच



Monday 4 July 2016

बेलगाम वाहन चालकों को हो कड़ी सजा


बेलगाम वाहन  चालकों को कड़ी सजा होनी चाहिए। सड़क दुर्घटना से होनेवाले मौतों को कम करने के लिए यह कदम उठाना अति आवश्यक है.  सड़क दुर्घटनाओं में मरनेवालों की संख्या पुरे विश्व में भारत में ही सर्वाधिक है. अभी देखा जाता है की आये दिन कोई न कोई बेलगाम ट्रक, बस, गाडी या मोटर बाइक चालक किसी न किसी राहगीर को कुचल कर चला जाता है. पीड़ित व्यक्ति की या तो मौत हो जाती है या वो गम्भीर रूप से घायल हो जाता है.

Death in road accident in India
सड़क दुर्घटना में मृत्यु 

Injured and hospitalized in road accident in India
सड़क दुर्घटना में घायल 

भारत में गतिसीमा से अधिक पर वाहन चलाने से जुर्माना भरना पड़ता है. सामान्यतः शहरों में दुपहिया वाहन के लिए ४० एवं चार पहिया वाहन के लिए ६० किमी प्रति घंटे की रफ़्तार निश्चित है. इससे तेज गति से वाहन चलाने पर प्रायः ट्रैफिक पुलिस द्वारा चालान किया जाता है. ऐसी स्थिति में वाहन चालक या तो कुछ रिश्वत ले-दे के या फिर जुर्माना भर के बरी हो जाता है. यहाँ ख़ास बात ये है की कोई दुपहिया वाहन चालक ४० से ऊपर ४५ पर चलाये या ९० की गति से जुर्माना एक ही होता है. जुर्माणों के इस प्रावधान  में संशोधन होना चाहिए.

मान लीजिए किसी ने गति सीमा से कुछ अधेिक गति से वाहन चलाया तो उससे सामान्य जुर्माना, ज्यादा तेज चलाने पर कुछ अधिक जुर्माना और खतरनाक गति से चलाने पर कठोर दण्ड का प्रावधान होना चाहिए। आमतौर पर खतरनाक गति से चलने वाले वाहन ही दुर्घटना और मौत का कारण बनते हैं. ऐसे चालकों के पकडे जाने पर लाइसेंस रद्द/ क़ैद जैसी सजा होनी चाहिए केवल जुर्माना भरना पर्याप्त नहीं।

शराब पीकर या अन्य कोई नशा कर बाहन चलाना भी आम बात है और यह भी सड़क दुर्घटना का एक प्रमुख कारण है. इस पर तो कठोरता से अंकुश लगना ही चाहिए.

प्रायः ये भी देखा गया है की खतरनाक गति से चलनेवाले वाहन पुलिस को धता बता कर चले जाते हैं परन्तु कानून का मामूली उल्लंघन करनेवाले पकडे जाते हैं और जुर्माना भरते हैं. इस स्थिति में परिवर्तन होना चाहिए। इसके साथ ही नाबालिगों द्वारा एवं बिना लाइसेंस वाहन चलाने पर भी कठोर निगरानी एवं सजा का प्रावधान होना चाहिए। लाइसेंस देने के तरीके को भी भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की जरुरत है जिससे वास्तव में वाहन चलाना आने पर एवं ट्रैफिक नियमों की जानकारी होने पर ही लाइसेंस दिया जाए. ओवरलोडिंग पर भी कठोर कार्यवाही होनी चाहिए

आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा जरुरी साक्षरता नहीं


Suggestions to PMO 9: Jobs in Organized sector vs Unorganized Sector in India

सादर,
ज्योति कोठारी,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
नरेंद्र मोदी विचार मंच

Wednesday 29 June 2016

सातवें वेतन आयोग से बढ़ेगी महंगाई और बेरोजगारी


Endless hunger of government employees #7thpaycommission

सरकारी कर्मचारियों की बढ़ती भूख  
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी है. इस के असर से महंगाई और बेरोजगारी बढ़ेगी। केंद्रीय कर्मचारियों का वेतन औसतन २३.५ फ़ीसदी बधाई गई है. इससे केवल ४७ लाख वर्त्तमान एवं ५२ लाख पूर्व कर्मचारियों को लाभ होगा जबकि इसका भर देश की १२५ करोड़ जनता को उठाना पड़ेगा। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागु करने से केंद्र सरकार पर 1लाख २ हज़ार करोड़ रुपये का अतिरिक्त सालाना बोझ पड़ेगा, और यह रकम जनता से वसूले हुए टैक्स में से जायेगा।

Report 7th Pay commission 1

Report 7th Pay commission 2
इसका एक पहलु ये भी है की विकास के काम में कमी होगी। देश का वीकास अवरुद्ध होगा और GDP विकास दर में भी कमी आएगी। दुसरी ओर इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी जिसका अनिवार्य परिणाम महंगाई के रूप  में आएगा। साथ ही मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी के कारण व्याज दरें या तो  बढ़ेगी या स्थिर रहेगी; व्याज दर नहीं घटने से उद्योग-व्यापर के लिए क़र्ज़ महंगा होगा और उनके विकास दर में भी कमी आएगी। जिससे बेरोजगारी बढ़ेगी।

इसका एक दूसरा पहलु ये भी है है राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए सरकार नई नियुक्ति नहीं करेगी और इससे भी बेरोजगारी बढ़ेगी।  केंद्रीय  वेतन बढ़ने पर राज्य सरकारों में भी वेतन बढ़ने  होगी और यह दुष्चक्र फिर से तेज गति से चलेगा।

सरकारी कर्मचारियों का वेतन वैसे भी अन्य निजी कर्मचारियों की तुलना में लगभग दुगुना है. यदि असंगठित क्षेत्र की बात करें तो यह लगभग चार से पांच गुना है. वेतन के अलावा अन्य भत्ते, छुट्टियां एवं अन्य सुविधाएँ इसके अतिरिक्त है. ऐसी स्थिति में सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ाना कहाँ तक वाजीव है?

पांचवें वेतन आयोग ने 52प्रतिशत और छठे वेतन आयोग  वीस प्रतिशत वेतन वृद्धि की थी. उस समय कर्मचारी संगठनों ने तत्कालीन सरकार पर दवाव डालकर इसे चालीस प्रतिशत करवा लिया था. इस तरह दोनों वेतन आयोगों का मिलाकर कुल वृद्धि ११३ प्रतिशत हो गई थी. (१००+५२ =१५२ +४०%= २१३). इस पर २३.५ प्रतिशत जोड़ने पर यह हो जाता है २६३ अर्थात १६३ प्रतिशत की वृद्धि!!!  यह नियमित वेतन वृद्धि एवं महंगाई भत्ते के अतिरिक्त है. अर्थात सरकारी कर्मचारियों को महंगाई का असर नहीं होता और ऊपर से इतनी ज्यादा वृद्धि दर!! हर सरकार लगातार सरकारी कर्मचारियों के आगे झुकती रही है और जनता जागरूक नहीं हुई तो आगे भी झुकती रहेगी। सबसे बड़ी बात ये है सरकारी कर्मचारी इस बढ़ोतरी से भी संतुष्ट नहीं हैं और हड़ताल पर जाने की धमकी दे रहे हैं.

सामान्य जनता तो सरकारी कर्मचारियों के रवैय्ये से वैसे ही नाखुश है, उन्हें लगता है की वे काम तो कम करते हैं और वेतन-सुविधाएँ अधिक लेते हैं. अब जनता को ही जागरूक हो कर इस प्रवृत्ति का मुखर विरोध करना होगा और अपने जन-प्रतिनिधियों को इसके विरुद्ध संसद और विधान सभाओं में आवाज उठने के लिए मजबूर करना होगा।

आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा जरुरी साक्षरता नहीं


Suggestions to PMO 9: Jobs in Organized sector vs Unorganized sector in India

सादर,
ज्योति कोठारी,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
नरेंद्र मोदी विचार मंच

फोटो: By மா.ராஜ் (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons

Tuesday 28 June 2016

आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा जरुरी साक्षरता नहीं


जी हाँ, आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा जरुरी है साक्षरता नहीं। शिक्षित व्यक्ति अपनी आय का साधन बढ़ा सकता है और आये हुए धन को सहेज कर अमीर भी बन सकता है परन्तु केवल साक्षर व्यक्ति ये काम नहीं कर सकता। यहाँ शिक्षा और साक्षरता का अंतर समझना बहुत जरुरी है. शिक्षा का अर्थ है किसी उपयोगी कल को सीखना जबकि साक्षरता केवल मात्र अक्षर ज्ञान है.

मध्यप्रदेश की ग्रामीण महिलाएं दक्षता विकास कार्यक्रम में मुस्कराते हुए 
अंग्रेजों ने बड़ी चालाकी से शिक्षा को साक्षरता का पर्यायवाची बन दिया था. प्राचीन काल से ही भारत में शिक्षा पर जोर था और यहाँ के व्यक्ति ज्ञान विज्ञानं के क्षेत्र में काफी प्रगति कर चुके थे. इसी कारण उस समय भारत आर्थिक रूप से भी बहुत समृद्ध था. परन्तु उस समय लिखने और पढ़ने पर बहुत जोर नहीं था. वेद, जैन आगम और बौद्धों का त्रिपिटक, जो की ज्ञान विज्ञानं का खजाना था उन्हें हज़ारों वर्षों तक लिखा नहीं गया था, उन्हें कंठस्थ किया जाता था.

जब अंग्रेजो ने भारत पर अधिकार किया तब उन्हें लगा की शिक्षित और आर्थिक रूप से समृद्ध इस देश को ज्यादा दिन गुलाम बनाए रखना संभव नहीं। इसलिए उन्होंने एक चाल चली. "शिक्षा" को "साक्षरता" में बदल दिया, और इस प्रकार भारत की अधिकांश शिक्षित जनता निरक्षर घोषित हो गई. अंग्रेजों ने साक्षरता को बढ़ावा दिया, उन्हें अच्छी नौकरी दी और गुलामों की फौज तैयार कर दी. वास्तविक शिक्षित व्यक्ति का सन्मान नष्ट हो गया. उसके साथ ही भारत की आर्थिक प्रगति भी रुक गई और एक बेहद समृद्ध देश गरीबी के गर्त में समां गया.

Narendra Modi, Rajnath Singh and Ram Naik in Lucknow
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह व राज्यपाल राम नाईक लखनऊ में दक्षता प्रमाण पत्र देते हुए 
दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद भी हम अंग्रेजों की बनाई हुई (लार्ड मैकाले) शिक्षा व्यवस्था को ही ढोते रहे और हमारे विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों ने (शिक्षित?) बेरोजगारों की फौज खड़ी कर दी. इन तथाकथित शिक्षण संस्थानों से प्रति वर्ष लगभग १ करोड़ विद्यार्थी निकलते हैं लेकिन उनमे से अधिकांश रोजगार पाए लायक नहीं होते. उन्हें साक्षर जरूर बनाया जाता है परन्तु उनमे व्यवहारीक शिक्षा का नितांत अभाव होता है. स्वयं का व्यापार करना तो दूर प्रायः वे नौकरी करने लायक भी नहीं होते.

अभी हाल में ही जारी मानव पूंजी सूचकांक (Human Capital Index) की विश्व सूचि में भारत १०५ वे स्थान पर है जो की बहुत ही नीचे की ओर है. इस सूचकांक में ऊपर की ओर बढ़ने के लिए शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है. शिक्षा जब तक व्यवहारिक व रोजगारोन्मुखी नहीं होगी हम इस सूचकांक में अच्छा सतहन नहीं प्राप्त कर सकेंगे.

इन तथाकथित शिक्षण संस्थानों में से सरकारी संस्थानों में जनता की गाढ़ी कमाई का खरबों रूपया बर्बाद होता है और निजी शिक्षण संस्थायें एवं कोचिंग इंस्टिट्यूट खरबों रुपये का व्यापारी लाभ कमाती है. इससे भी बड़ी बीमारी ये है की अधिकांश माता-पिता डिग्री एवं नंबरों के मोह में पड़ कर अपना पैसा और बच्चों का भविष्य बर्बाद कर देते हैं.

डिग्री और नंबर के मोह में पड़े बिना यदि इन छात्रों को व्यवहारिक, जीवनोपयोगी, एवं रोजगारोन्मुखी शिक्षा दी जाये तो उनमे कार्यकुशलता बढ़ेगी और अच्छा रोजगार मिलेगा। उनमे व्यावसायिक दक्षता का विकास होगा। उनमे से ही उद्यमी, प्रवन्धक, व्यापारी आदि निकलेंगे और वे अन्य युवाओं को नौकरी भी देंगे। इस तरह से देश आर्थिक प्रगति की राह पर तेजी से आगे निकलेगा।

एंड्राइड एप्लिकेसन डेवलपमेंट में अपार सम्भावनाएं


सादर,
ज्योति कोठारी,
संयोजक, जयपुर संभाग,
प्रभारी, पश्चिम बंगाल,
नरेंद्र मोदी विचार मंच

चित्र १: By McKay Savage from London, UK (smiles and determination of rural Indian women #1) [CC BY 2.0 (http://creativecommons.org/licenses/by/2.0)], via Wikimedia Commons

Sunday 26 June 2016

NSG में भारत की राह रोकनेवाले चीन को सबक सिखाना जरूरी


NSG में भारत की राह रोकनेवाले चीन को सबक सिखाना जरूरी है. NSG अर्थात परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में कुल ४८ देश हैं जिनमे अमरीका, रूस, फ़्रांस सहित ४२ देशों ने भारत के प्रवेश का समर्थन कर दिया था. केवल चीन ने ही भारत विरोध का अपना अड़ियल रूख कायम रखा. अमरीका ने तो वाकायदा सभी सदस्य देशों को पत्र लिख कर भारत का समर्थन करने  अनुरोध किया था.


Updated map of the governments participating in the Nuclear Suppliers Group

शुरू में कुछ देश भारत का विरोध कर रहे थे परन्तु प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के बाद स्वीजरलैंड एवं मेक्सिको ने भारत का समर्थन कर दिया था. अंतिम दिन तो ऑस्ट्रिया, न्यूज़ीलैंड, तुर्की आदि देश भी नरम पड़ गए थे. परन्तु प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अनुरोध के वावजूद चीन के राष्ट्रपति जिन पिंग ने अपना रवैय्या नहीं बदला और भारत विरोध की नीति पर कायम रहे.

NSG अर्थात परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में किसी नए राष्ट्र का प्रवेश सर्वसम्मति से ही हो सकता है और अकेले चीन के विरोध के कारण भारत इसका सदस्य नहीं बन पाया। अभी दो-तीन रोज पूर्व दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में NSG सदस्य देशों की बैठक हुई थी. दक्षिण कोरिया ने अपने मेजबान होने का फ़र्ज़ अदा करते हुए सदस्य देशों में सहमति बनाने का भरपूर प्रयास किया।

कल अमरीकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने एक बयान जरी कर कहा है की भारत को NSG की सदस्यता दिलाने के लिए अमरीका पूरा प्रयास करेगा और यह सुनिश्चित करेगा की इस वर्ष के अंत तक भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता मिल जाए. यह नरेंद्र मोदी जी के कूटनीतिक प्रयासों की सफलता है.

हम भारत की जनता को भी इस प्रयास में अपनी भूमिका निभानी है और चीन को सबक सीखाना है. अर्थनीति रूप से चीन पर चोट करना है और उसके लिए चीनी सामानों का बहिष्कार आवश्यक है. यदि भारत के लोग चीनी सामान खरीदना बंद कर दें तो पहले से ही मंदी से जूझ रहे चीनी उद्योगों को भारी झटका लगेगा. उनके बहुत से उद्योग तो बंद ही हो जायेंगे ऐसी स्थिति में चीन को भारत विरोध की अपमी नीति त्यागने को मज़बूर होना पड़ेगा।

२० उपग्रह एक साथ अंतरिक्ष में भेज इसरो ने भारत को बनाया महाशक्ति


Regards,
Jyoti Kothari
Convener, Jaipur division
Prabhari, West Bengal,
Narendra Modi Vichar Manch



Wednesday 22 June 2016

२० उपग्रह एक साथ अंतरिक्ष में भेज इसरो ने भारत को बनाया महाशक्ति


इसरो द्वारा निर्मित स्वदेशी प्रक्षेपण यान  PSLV 34
२० उपग्रह एक साथ अंतरिक्ष में भेज इसरो ने भारत को बनाया अंतरिक्ष विज्ञानं का महाशक्ति। भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान परिषद (इसरो) ने आज श्रीहरिकोटा में PSLV 34 प्रक्षेपण यान से एक साथ २० उपग्रहों को पृथ्वी से ५५० किलोमीटर दूर अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया.  इससे पूर्व अमरीका ने २०१३ में एक साथ २९ एवं रूस ने २०१४ में एक साथ ३३ उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा था. इस तरह सर्वाधिक उपग्रहों को एक सात भेजने के मामले में भारत दुनिया का तीसरा देश बन गया है. गौरतलब है की ब्रिटेन, फ़्रांस, जापान, जैसे विकसित देश और भारत को लगातार घेरने की कोशिश में लगा चीन भी इस मामले में भारत से काफी पीछे है.

आज जिन उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेज गया उनमे से १३ अमरीका के, इंडोनेशिया, जर्मनी, आदि देशों के ४ और भारत के ३ उपग्रह शामिल हैं. अमरीकी सैटेलाइटों में से एक गूगल का भी है. भारतीय उपग्रहों में से एक पुणे कॉलेज ऑफ़ इंजिनीरिंग के छात्रों ने बनाया है. मात्र ९९० ग्राम के इस सैटेलाइट का नाम "स्वयं" है. भारत की यह सफलता पूर्णतः स्वदेशी तकनीक पर आधारित है और इसके लिए इसरो के सभी वैज्ञानिक एवं अन्य कर्मीदल वधाई के पात्र हैं.

कृत्रिम उपग्रह निर्माण एवं प्रक्षेपण का विश्वव्यापी बाज़ार बहुत बड़ा है और भारत इसमें एक प्रमुख खिलाडी के रूप में उभरा है. इसरो द्वारा प्रक्षेपण की लगत दुनिया के अन्य देशों के मुक़ाबले मात्र १० प्रतिशत है अर्हत अन्य देशों से प्रक्षेपण कराने पर भारत से दस गुनी कीमत अदा करनी पड़ती है. अपने किफायती तकनीक के कारण इसरो विश्व बाज़ार में एक सक्षम प्रतिद्वंदी  में तेजी से उभर रहा है  अब तक ६६० करोड़ रुपये का कारोबार कर लिया है.

अंतरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में इस बड़ी कामयाबी के लिए इसरो के वैज्ञानिकों एवं सम्पूर्ण भारतवासियों को पुनः वधाई। यह कामयाबी परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की दावेदारी को और मज़बूत करेगा और चीन को भारत विरोध त्याग करने की दिशा में कदम बढाने किदिशा में सोचना पड़ेगा।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के विश्व महाशक्ति बनने की ओर बढ़ते कदम


Regards,
Jyoti Kothari
Convener, Jaipur division
Prabhari, West Bengal,
Narendra Modi Vichar Manch

फोटो: By Ashutoshrc (Own work) [CC BY 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by/3.0)], via Wikimedia Commons


Sunday 19 June 2016

Suggestions to PMO 10- Control drugs and drugs addictions


I am writing the tenth blog in the series-Suggestions to PMO about exercising control over drugs and drugs addictions. Large numbers of Indian people are drug addicted especially the youth and young. Drugs are snatching their lives from their hands. The youth India is spending a huge amount of  money in consuming drugs. This addiction is leading them to a state of illusion and false tranquility.

Drug addicted people are unable to work properly and live a normal life. In many cases, they have a tendency to jump to criminal activities. A nexus of corrupt politicians, drug mafia, government administration and law enforcement officers are mainly responsible for the proliferation of drugs.

Say no to drugs
Narendra Modi, Prime Minister of India, is continually working hard to take India to the league of developed nations. Drugs and its addiction is a big hurdle to his mission. We request the PMO to take strong initiatives to control over drug mafia.



Regards,
Jyoti Kothari
Convener, Jaipur division
Prabhari, West Bengal,
Narendra Modi Vichar Manch

Picture: By Miran Rijavec [CC BY 2.0 (http://creativecommons.org/licenses/by/2.0)], via Wikimedia Commons

Friday 17 June 2016

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के विश्व महाशक्ति बनने की ओर बढ़ते कदम


प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व शक्ति बनने की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है. दो वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही मोदी जी ने देश को विकास की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए पहले पड़ौसी देशों से सम्वन्ध सुधारे और फिर विश्व भ्रमण पर निकल पड़े. विपक्षी दलों ने उनके विदेश भ्रमण की भरपूर आलोचना की और मीडिया ने भी उनका खूब साथ दिया। परन्तु अब विदेश भ्रमण का फल दिखने लगा है. क्योंकि मोदी जी सैर-सपाटा या मौज मस्ती के लिए नहीं गए थे वल्कि वहां भी वे लगातार काम कर रहे थे.

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ नरेंद्र मोदी 

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का लक्ष्य भारत को विश्व में महाशक्ति बनाना है जिसके लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद  की स्थाई सदस्यता एवं वीटो पावर की जरुरत है. अभी अभी भारत को MTCR अर्थात मिसाइल टेक्नोलॉजी कन्ट्रोल रेजिम में सदस्यता मिली है एवं NSG अर्थात न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप की सदस्यता का वह प्रवल दावेदार है. गौरतलब है की चीन MTCR का सदस्य नहीं है. अमरीका, रूस, ग्रेट ब्रिटेन, फ़्रांस, जापान, आदि प्रमुख देशों ने भारत की NSG सदस्यता का प्रवल समर्थन किया है. मोदी जी की हाल की यात्रा में स्विट्जरलैंड और मेक्सिको का समर्थन भी हासिल हो चूका है. विरोध करने के कारण चीन जैसा शक्तिशाली देश भी विश्व मंच पर अलग पड़ता जा रहा है. यह भी सम्भावना है की आगामी सप्ताह होने वाली NSG की सभा में चीन भी भारत का समर्थन कर दे और हमारा देश NSG की सदस्यता प्राप्त कर ले।

MTCR और NSG दोनों की सदस्यता संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता की दावेदारी के लिए मील का पत्थर सावित होगी। इसके बाद पकिस्तान तो क्या चीन भी भारत को आँख दिखाने का साहस नहीं कर सकता है. इसके साथ ही भारत आर्थिक मोर्चे में भी बहुत ही तेजी से आगे बढ़ रहा है. विश्व में सर्वाधिक सम्पत्तिवाले देशों में अभी कुछ ही दिनों पूर्व भारत ने इटली को पीछे छोड़ कर छठा स्थान प्राप्त किया है. भारत साढ़े सात प्रतिशत से भी ज्यादा विकास दर के साथ विश्व की सबसे तीव्र गति से आगे बढ़नेवाली अर्थव्यवस्था है।  इस मामले में उसने चीन के एकाधिकार को तोडा है.

हमें पूरा भरोसा है की  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत जल्दी ही विश्व की प्रमुख आर्थिक एवं सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित होगा।

India Steps ahead for Veto power in United Nations



Regards,
Jyoti Kothari
Convener, Jaipur division
Prabhari, West Bengal,
Narendra Modi Vichar Manch


Thursday 7 April 2016

नवरात्री पर्व एवं नवदुर्गा के मन्त्र




शक्ति का एक रूप सरस्वती देवी 
नवरात्री पर्व एवं नवदुर्गा के मन्त्र 

भारत में शक्ति पूजा की परंपरा रही है एवं सनातन धर्म के अनुयायी वर्ष में दो बार (चैत्र एवं आश्विन)  शक्ति उपासना के लिए ९ दिन तक व्रत एवं उपासना करते हैं. कल आठ अप्रैल चैत्र शुक्ल एकम से चैत्र नवरात्री प्रारम्भ हो रहा है. साथ ही कल भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ भी हो रहा है.

नवरात्री पर्व पर भक्त गन नवदुर्गा अर्थात शक्ति के ९ रूपों की पूजा, आराधना आदि करते हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नव दिनों तक उपवास कर नवरात्री व्रत करते हैं और अपनी अमरीका यात्रा के दौरान भी यह व्रत रख कर उन्होंने पुरे विश्व को चौंका दिया था.

  इन नवदुर्गाओं के नाम क्रमशः इस प्रकार है जिनकी एकम, दूज, तीज, से लेकर नवमी तक उपासना की जाती है.  १.  श्री  शैलपुत्री  २. श्री व्रह्मचारिणी  ३.  श्री चन्द्रघण्टा  ४. श्री कुष्मांडा   ५. श्री स्कन्दमाता   ६. श्री कात्यायनी   ७.  श्री कालरात्री  ८.  श्री महागौरी   ९. श्री सिद्धिदात्री

इन नवदुर्गाओं के जप मन्त्र इस प्रकार हैं जिन्हे ९ दिनों में क्रमशः जप किया जाता है.

 १.  ॐ ह्रीं श्री शैलपुत्री दुर्गायै नमः
 २.  ॐ ह्रीं श्री व्रह्मचारिणी दुर्गायै नमः
 ३.  ॐ ह्रीं श्री चन्द्रघण्टा  दुर्गायै नमः
 ४. ॐ ह्रीं श्री कुष्मांडा  दुर्गायै नमः
 ५. ॐ ह्रीं श्री स्कन्दमाता  दुर्गायै नमः
 ६. ॐ ह्रीं श्री कात्यायनी  दुर्गायै नमः
 ७. ॐ ह्रीं श्री कालरात्री दुर्गायै नमः
 ८. ॐ ह्रीं श्री महागौरी  दुर्गायै नमः
 ९. ॐ ह्रीं श्री सिद्धिदात्री दुर्गायै नमः

कन्हैया लाल एवं रोहित बेमुला विमर्ष



Friday 4 March 2016

कन्हैया लाल एवं रोहित बेमुला विमर्ष


 कन्हैया लाल ने आज कहा की रोहित बेमुला  उसका आदर्श है
कन्हैयालाल उत्तेजित मुद्रा में
 कन्हैया लाल ने आज कहा की रोहित बेमुला  उसका आदर्श है और घर घर में रोहित बेमुला  पैदा होना चाहिए।  कन्हैया जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष है एवं राष्ट्रद्रोह के एक मामले में सशर्त अंतरिम जमानत पर है.

हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित बेमुला ने आत्महत्या की और इसके लिए पूरा देश दुखी है एवं उससे सहानुभूति रखता है। परन्तु वह युवकों/ छात्रों का आदर्श कैसे हो सकता है?  क्या उसे आदर्श बता कर कन्हैया युवकों को आत्महत्या के लिए प्रेरित करना चाहता है?

देश का, युवकों का आदर्श वो होता है जो किसी नेक काम के लिए अपनी शहादत दे जैसे आज़ादी की लड़ाई के वीर सिपाही नेताजी सुभाष चन्द्र बसु या शहीद ए आज़म भगत सिंह; या सीमा पर लड़ते हुए हस्ते हुए जान की बाज़ी लगा देनेवाले. देश का आदर्श वो भी होता है जो  या किसी अच्छे काम के लिए संघर्ष करते हुए जीवन बीता दे. कभी कभी संघर्ष के बल पर व्यक्तिगत लक्ष्य प्राप्त करनेवाले भी आदर्श बन जाते हैं और उनका जीवन-संघर्ष लोगों को, खास कर युवाओं को प्रेरणा देता है. परन्तु संघर्ष न कर आत्महत्या करनेवाला नौजवानो का/ छात्रों का आदर्श कैसे हो सकता है?

हमें भी पुरे देश की तरह रोहित बेमुला जैसे नौजवानो से हमदर्दी है और जिस बेरहम तंत्र के कारन छात्रों को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है उसे बदलने के लिए सभी को मिल कर प्रयास करना चाहिए। वर्त्तमान सरकार इस दिशा में भरसक प्रयत्न भी कर रही है और उसे ही कटघरे में खड़ा कर कुछ निहित स्वार्थी तत्व क्या हासिल करना चाहते हैं?

अभी दो दिनों में एक बात तो अच्छी हुई की कन्हैया ने भी देशभक्ति के नारे लगाने शुरू कर दिए, उसके भाषण के शब्द ही बदल गए परन्तु राजनैतिक रोटी सेकने के लिए दिए गए उसके भाषण में रोहित बेमुला को अपना और देश का आदर्श बताना उसके ढकोसले की पोल खोल देता है. उसने ये भी  कहा की उसे देश से नहीं देश में आज़ादी चाहिए। आज देश में हर किस्म की आज़ादी है जैसे बोलने की आज़ादी, मतदान की आज़ादी, आदि आदि. गरीबी से आज़ादी के लिए मेहनत करनी पड़ती है, पसीना बहाना पड़ता है; नारे लगाने से गरीबी से आज़ादी नहीं मिलती.

देश की बहुत सी राजनैतिक पार्टियां आज उसके समर्थन पे जोरो से उतर आई है, मिडिया भी उसे बहुत प्रोत्साहन दे रहा है. क्या इन सभी को आत्महत्या के लिए उकसानेवाला नहीं माना जाना चाहिए?

यहाँ पर यह भी देखना होगा की कन्हैया की उम्र २९ वर्ष है और वह अभी तक विश्वविद्यालय में पढ़ रहा है. हम ये भी जानना चाहते है की वो कबसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ रहा है? उसकी पढाई अभी तक पूरी क्यों नहीं हुई? क्या वो पढाई के उद्देश्य से ही वहां है या उसका कोई राजनैतिक उद्देश्य भी है? जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मुफ्त पढाई का खर्च जनता के टैक्स से जाता है अतः हमें भी ये सब जानने का अधिकार है.

क्या लाल बहादुर शास्त्री के मृत्यु का रहस्य अब खुलेगा?


Regards,
Jyoti Kothari
Convener, Jaipur division
Prabhari, West Bengal,
Narendra Modi Vichar Manch

Sunday 28 February 2016

Suggestions to PMO 9: Jobs in Organised sector vs Unorganized sector in India



Suggestions to PMO 9: Jobs in Organised sector vs Unorganized sector in India



This is ninth one in the series of Suggestions to PMO, Where we are discussing Jobs in Organised sector vs Unorganized sector in India. Employees in the unorganized sector are poorly paid in comparison to the organized sector. Employees in the organized sector are at the top of the job pyramid and that of the unorganized sector is at the bottom. We are also witnessing that demands of organized employees are ever growing despite their much better placements.

We have been suggesting the Prime Minister's office since our beloved Prime Minister Sri Narendra Modi has become Indian Premier. We know that he is very keen to know from the public about their problems and to act to solve these problems. We discuss with the experts from the different walks of life such as professionals, business persons, politicians, academicians, journalists, students, farmers and common people of India at large and write on the basis of their opinions. today, we are discussing Jobs in Organised sector and Unorganized sectors in India.

Jobs: Organized vs unorganized sectors in India


India has a small percentage of jobs in the organized sector in comparison to Unorganized sector. Whereas, in developed countries, more jobs come from the organized sector. This is the basic difference in the job scenario between developed nations and India. If we want to uplift the economically deprived class in India, we have to understand situations of both sectors and analyze the circumstances with an open angle. The organized sector in India is providing only 8-9 percents of total employment. Further, most of these jobs are from government sectors. The organized private sector has only a little contribution in providing employment.

India is still a land of farmers and the agricultural sector provides most of the employment. And we know that this is more or less, in the unorganized sector. Farmers are on the lower side of per capita income. The government spends a lot on account of salaries and other benefits to their officials and other employees that put the budget into stress. The finance ministers are always left with resource constraints for infrastructure development and other social sector expenditures. Finance ministers of the union of India and state governments, across the political parties, have been facing the same problem.

 Large numbers of private enterprises working in various trades and industries (both in manufacturing and service sectors) are the main source of employment in India in unorganized sector besides agriculture. Most of these enterprises belong to Micro and Small scale. These entrepreneurs have little resources and struggle for their bread and butter. Normally they lack in expertise and management capabilities. Hence, they have lower profitability. Availability of skilled workforce is also a big challenge for them.

The unorganized sector in India, by and large, have lower paying capacity. Salaries and wages in this sector are much lower than those of the organized sector. Large numbers of the unemployed workforce in India, who cannot be adjusted in the organized sector, have no choice but to work in the unorganized sector with a lower pay cheque and other facilities. Governments are unable to help the entrepreneurs as the resources left to the government (after paying salaries to government employees) do not allow to do so.

Narendra Modi improved the situation


The present government led by Narendra Modi have done a wonderful job in the last twenty months to improve the situation by taking several innovative measures. Skill development is one of these measures. The government helped farmers by providing Neem coated urea thus promoting biopesticides. The Indian government has been promoting young Indian entrepreneurs with "Startup India and Stand up India" programs and by starting MUDRA that provides easy bank loan to the service sector and manufacturing sector without collateral security.  

However, all these measures are not enough to improve the entire situation. We have to take much more initiatives and work tirelessly to eradicate poverty completely. We need to support the organized private sector continues to be competitive in the global market. They are instrumental to bring India at the top of global manufacturers. Focusing both on the top and the bottom of the Indian population is necessary for overall development.

Government employees


Lastly, we are coming to a radical suggestion. this is very important for the economic growth of the country. Both organized and unorganized private sectors pay their employees according to the rule of demand and supply. However, the government sector pays as per their rule. Everybody knows that service in the government sector is the most lucrative and most preferred one. Government employees have a lion's share in total government spending. Moreover, they have been getting maximum other facilities. Instead, we are facing their ever-growing demands. We already have seven pay commissions who have always increased the salaries of the government employees.

The organized private sector also pays good packages to skilled and talented workers. However, one has to prove his or her efficiency to get a good job and has to continue with hard work to remain in that lucrative job. However, government employees need not prove their efficiency, again and again, to remain in the service. Once employed, one is permanent.

If we compare the salaries and benefits of government employees with those of employees in the unorganized sector, we find a huge gap. They belong to the elite class among employees.  Is it desirable in a democracy to pay much to a particular class depriving large numbers of the population? After all, this is the money of taxpayers. It is also well known that the government officers are not accountable to the public for their work despite efforts by the PM.

All political parties keep mum on this issue. Communist parties support agitations and movements of government employees for salary hikes in many cases. The nation needs a debate on this issue.

Thanks to Modi to act on our suggestions


We are thankful to PM Narendra Modi who has already acted upon six of our eight suggestions. and working on 10 measures to make India the hub for Spiritual Tourism. We are hopeful that the government will act soon on this one. 


Stop future trading of agricultural products: Suggestions to PMO 7

Important update: PM Narendra Modi spoke in the Loksabha yesterday where he had informed that government officers are not showing accountability. His speech may stimulate a national debate. He told this just 4 days after we requested for a National debate. Thanks to PM who listens to the voice of common people. 

Regards,
Jyoti Kothari
Convener, Jaipur division
Prabhari, West Bengal,
Narendra Modi Vichar Manch