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Tuesday 13 October 2015

दाल के भाव, जनता, किसान और सरकार


विभिन्न प्रकार के दाल
दाल की बहार को भारतीय निहारते किसान 

दाल की खेती करते भारतीय निहारते किसान

दाल के भाव इन दिनों हर जगह चर्चा में है, भारत की सामान्य जनता इसके बढ़ते भाव को लेकर बेहद परेशान है और इसके लिए सम्पूर्ण विपक्ष मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है. परन्तु इसकी वास्तविकता क्या है यह जानना बेहद जरुरी है. भारत में मुख्य रूप से चना, तुअर, मूंग, मसूर, उड़द आदि दालों का उत्पादन होता है. 

भारत जैसे देश में दाल ही प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत है परन्तु दाल की प्रति व्यक्ति उपलव्धता कम है. स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में प्रति व्यक्ति दाल की उपलव्धता ६० ग्राम थो जो की घट कर ८० के दसक में ५० ग्राम और २१ वी सदी के प्रारम्भ में मात्र ३५ ग्राम रह गई. इसका मुख्य कारन था कम पैदावार। भारत में दाल का उत्पादन १ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ा जबकि जनसँख्या २ प्रतिशत की दर से बढ़ती रही. पिछले कुछ वर्षों में आयत कर इस कमी को पूरा करने का प्रयास किया गया जिससे प्रति व्यक्ति खपत बढ़ कर पुनः ५० ग्राम के स्टार तक आ गई.

भारत एक उन्नतिशील देश है जिसकी अर्थ व्यवस्था विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थ व्यवस्था है, लोगों की आय एवं उसके साथ ही जीवन स्तर भी बढ़ रहा है. कुपोषण से बचने के लिए दाल एक सहज सुलभ माध्यम है, खास कर शाकाहारी लोगों के लिए यह प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत है. इस समय भारत में प्रति वर्ष लगभग २.४ करोड़ टन दाल की खपत होती है जिसे २ करोड़ टन के घरेलु उत्पादन, एवं ४० लाख टन आयात कर पूरा किया जाता है.

इस वर्ष ख़राब मानसून के कारन दाल के उत्पादन में कमी आई है, जिससे मांग एवं आपूर्ति के बीच खाई और गहरी हुई है. इस वर्ष विदेशों में भी उत्पादन काम हुआ जिससे आयातित दाल भी महंगा पड़ रहा है. इसी वजह से दाल के भाव आसमान छूने लगे हैं. हालाँकि आयात बढ़ा कर सरकार इसे नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है परन्तु भाव अभी तक काबू में नहीं आये हैं.

हमारा सुझाव है की मांग एवं आपूर्ति के अंतर को कम करने के लिए फौरी तौर पर आयात को और अधिक बढ़ाया जाये, जमाखोरी पर नियंत्रण लाया जाए और सब्सिडी दे कर भी इसके दाम को नियंत्रण में रखा जाये। समस्या के स्थाई समाधान के लिए दाल का समर्थन मूल्य बढ़ा कर किसानो को इसके उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जाये साथ ही उत्पादकता वृद्धि के लिए विशेष प्रयास किया जाये। भारत दाल की उत्पादकता एवं उत्पादकता वृद्धि दर में विश्व के अनेक देशों से कोसों पीछे है, अतः एक टास्क फ़ोर्स बना कर युद्धस्तर पर इस काम को हाथ में लेना चाहिए।

दाल की उत्पादकता एवं वृद्धि दर के कुछ आंकड़े:

हमारे पड़ौसी देश म्यांमार में संन १९६१ में प्रति हेक्टेयर ४४२ किलोग्राम दाल पैदा होता था जो की २०१२ तक लगभग तीन गुना बढ़ कर १३२३ किलोग्राम हो गया. हमारे दूसरे पड़ौसी चीन ने भी इसी दौर में ८७६ किलो से इसे १४३६ किलो पर पंहुचा दिया। ब्राज़ील ६६८ से १०२७ पर पहुंच गया. पहले से ही उच्च उत्पादकता वाला देश कनाडा इसी अवधि में दाल की उत्पादकता को ११४१ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़ा कर १८९२ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के आंकड़े पर ले आया है. इन सब देशों के मुकाबले हमारी उत्पादकता की बानगी देखिये- ५१ वर्षों की अवधि में कछुआ चाल से चल कर हम ५४० किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से ६४१ किलोग्राम पर पहुंचे हैं.

इस दयनीय स्थिति का कारण क्या है और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? वर्त्तमान सरकार को दोष देनेवाले लोग क्या अपनी गिरेबान में झाँक कर देखेंगे? परन्तु यह समय दोषारोपण या आरोप प्रत्यारोपों का नहीं है सरकार के साथ हम सभी को मिल कर इस दिशा में काम करना होगा।

सरकार के काम एवं अपेक्षाएं:

उन्नत मान के वीज एवं तकनीक का अभाव, मौसम की अनियमितता, कीड़ों का प्रकोप आदि कारणों से हमारी उत्पादकता कम है. सिचाई के लिए पानी एवं बिजली की व्यवस्था एवं समय पर खाद की आपूर्ति भी दाल का उत्पादन बढ़ने में सहायक होगी।  इन सब उपायों से यदि हम हमारे उत्पादन दर को ८०० किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक भी पंहुचा सके तो हम दालों के मामले में आत्मनिर्भर हो सकेंगे और हमें आयत नहीं करना पड़ेगा। इससे जहाँ दालों का भाव नियंत्रण में रहेगा वहीँ किसानो को भी मुनाफा होगा और वे भी खुशहाल होंगे। इससे बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा (लगभग १५ हज़ार करोड़ रुपये या २.५ बिलियन डॉलर) की बचत भी होगी।

मोदी जी देश के ऐसे प्रधान मंत्री हैं जो देश की जनता के सर्वांगीण विकास के लिए कटिवद्ध हैं ऐसे में हम उनसे अपेक्षा रखते हैं की वर्त्तमान में भावों को नियंत्रित करने के लिए फौरी तौर पर जो कुछ किया जा सकता है करें और दूरगामी नीति के क्रियान्वयन से समस्या का स्थाई समाधान करें।

"डिजिटल इंडिया" एवं "मेक इन इंडिया" कार्यक्रमों के कारन देश में विदेशी निवेश बढ़ा है परन्तु कृषि हर चीज की बुनियाद है अतः सरकार इस क्षेत्र में निवेश बढ़ा कर और इच्छाशक्ति दिखा कर उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर सकती है.

चलते चलते: अभी तीन दिन पहले एक निजी मुलाक़ात में मैंने केंद्र सरकार में मंत्री श्री राज्यवर्धन सिंह राठोड को भी यह सुझाव दिया था एवं आदरणीय प्रधानमंत्री जी को अवगत करने के लिए कहा था.


ज्योति कोठारी 
संयोजक, जयपुर संभाग 
प्रभारी, पश्चिम बंगाल ,
नरेंद्र मोदी विचार मंच 


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